“ख़ुदा की गाली, रसूल का अश्लील जवाब – क्या यह दिव्यता है?”
कुरान और हदीस का विश्लेषण, यह जानने के लिए कि क्या इसमें प्रयुक्त भाषा वास्तव में दैवीय है या मानवीय क्रोध का प्रतिबिंब, कठोर आदेश, अपमान और विवादास्पद वर्णनों के साथ।
कुरान और हदीस का विश्लेषण, यह जानने के लिए कि क्या इसमें प्रयुक्त भाषा वास्तव में दैवीय है या मानवीय क्रोध का प्रतिबिंब, कठोर आदेश, अपमान और विवादास्पद वर्णनों के साथ।
मुबाहिला (कुरआन 3:61) की ऐतिहासिक घटना का आलोचनात्मक विश्लेषण। इस लेख में दिखाया गया है कि कैसे यह घटना तर्कहीनता और श्राप-धमकी की मानसिकता को जन्म देती है, और क्यों मुसलमानों को गाली-ग़लौज व तक़फ़ीर की बजाय तर्क, संवाद और आलोचना को अपनाना चाहिए।
यह लेख इस्लामी सिद्धांत “कितमान” पर केंद्रित है—जहाँ सच को आधा छुपाना और धोखे को वैध ठहराना धार्मिक नीति माना जाता है। क़ुरआन, हदीस और तफ़सीर के प्रमाणों के साथ इसमें बताया गया है कि कैसे “कितमान” इस्लामी रणनीति और सत्ता विस्तार का एक औज़ार बना।
तक़ीय्या और धार्मिक छल का एक आलोचनात्मक, साक्ष्य-आधारित अध्ययन — क़ुरआन की आयतों, हदीसों, ऐतिहासिक उदाहरणों और भारतीय नैतिक परंपरा की प्रतिक्रिया का विश्लेषण। शोधपरक, तर्कपूर्ण और सन्दर्भ-सम्पन्न विवेचना।
इस्लाम में झूठ और छल की वैधता पर आलोचनात्मक विश्लेषण – तक़़य्या, कितमान, तौरिया, मरूना और “मकर” की कुरानी तफ़सीरों के संदर्भ में।
एक क्रिटिकल और संदर्भित विश्लेषण: क़ुरान और सहीह हदीस के आदर्शों से इस्लाम की राजनीतिक-रणनीतिक व्यवहारिकता — दारुल-इस्लाम/दारुल-हरब, जिहाद, ताक़िय्या, हुदना, जज़िया और खिलाफ़त। स्रोतों के हवाले के साथ लेख जो यह दर्शाता है कि धर्म कब धार्मिक रहने से निकलकर राजनीतिक-रणनीति बन जाता है।
“काफ़िर” शब्द का मूल अर्थ, कुरान और हदीस में इसका प्रयोग, और इतिहास में इसके सामाजिक-राजनीतिक प्रभाव का अकादमिक विश्लेषण। जानिए कैसे यह शब्द साधारण ‘अस्वीकार करने वाले’ से धार्मिक-राजनीतिक लेबल बन गया।
कुरान और मानवता का गहन विश्लेषण: यह लेख कुरान की आयतों को मानवता के दृष्टिकोण से जांचता है, जिसमें सृष्टि, नैतिकता, युद्ध, न्याय और दया जैसे विषय शामिल हैं। कुरान के संदेशों की ऐतिहासिक और दार्शनिक व्याख्या को समझें और इसके सार्वभौमिक मूल्यों को जानें।
Ry 506 और Ry 507 जैसे हिम्यराइट शिलालेख साबित करते हैं कि अब्राहा 560 ईस्वी तक मर चुका था और उसके बाद उसका बेटा शासक बना। इस आधार पर मुहम्मद का जन्म (570 ईस्वी) ‘हाथी वाले साल’ से जोड़ना ऐतिहासिक रूप से असंभव है।”
हज़रत हम्ज़ा और पैगंबर मुहम्मद की उम्र का अंतर व आमिना के लंबे गर्भकाल पर ऐतिहासिक स्रोतों से आधारित शोधपूर्ण लेख।