
भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमान मानते हैं कि क़ुरान पूरी तरह से सुरक्षित (Preserved) है और उसमें एक शब्द भी नहीं बदला गया। यह दावा इस्लामी शिक्षाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। लेकिन इतिहास, इस्लामी स्रोतों और विद्वानों के शोध यह दर्शाते हैं कि क़ुरान की संरक्षण प्रक्रिया कहीं अधिक जटिल रही है। इस लेख में हम क़ुरान की प्रामाणिकता, ऐतिहासिक प्रमाणों, प्राचीन पांडुलिपियों और हदीसों के आधार पर इसकी वास्तविक स्थिति का विश्लेषण करेंगे।
1. इस्लामिक दावा: क़ुरान की पूर्ण सुरक्षा
मुस्लिम विद्वानों का दावा है कि अल्लाह ने स्वयं क़ुरान की सुरक्षा की गारंटी दी है, जैसा कि क़ुरान में कहा गया है:

📖 सूरह अल-हिज्र (15:9)
“निःसंदेह, हमने यह स्मरण (क़ुरान) उतारा है, और निःसंदेह, हम ही इसके रक्षक हैं।”
🔹 इस आयत को इस्लाम में यह साबित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है कि क़ुरान में कभी कोई बदलाव नहीं हुआ।
🔹 लेकिन, इस्लामी स्रोतों और ऐतिहासिक प्रमाणों से पता चलता है कि क़ुरान की संरचना, संकलन और संरक्षण में कई बदलाव हुए हैं।
2. क़ुरान का संकलन: ऐतिहासिक दृष्टिकोण
1️⃣ पैगंबर मुहम्मद के समय क़ुरान का संकलन
- पैगंबर मुहम्मद (ﷺ) के जीवनकाल में क़ुरान को संकलित नहीं किया गया था।
- क़ुरान को हड्डियों, पत्तों, चमड़े, पत्थरों पर लिखा जाता था और कुछ साथियों द्वारा याद किया जाता था।
- पैगंबर ने कभी भी क़ुरान को एक पुस्तक के रूप में संकलित करने का आदेश नहीं दिया।

📖 सहीह बुखारी 4986
“पैगंबर (ﷺ) की मृत्यु हो गई और क़ुरान को एक पुस्तक के रूप में संकलित नहीं किया गया था।”
जब यमामा की जंग (जहाँ झूठे नबी मुसैलिमा से युद्ध हुआ) में बहुत से क़ारी (हाफ़िज़-ए-कुरान) सहाबा शहीद हो गए। इसी वजह से कुरान के हिस्से खोने का डर पैदा हुआ। तब उमर इब्न अल-ख़त्ताब ने अबू बक्र को सुझाव दिया कि कुरान को एक किताब में संकलित किया जाए।
🔹 इसका मतलब यह है कि मुहम्मद (ﷺ) के समय कोई आधिकारिक क़ुरान मौजूद नहीं था।
2️⃣ अबू बक्र के समय पहला संकलन (632-634 CE)
- यमामा की लड़ाई में कई क़ुरान याद करने वाले (Qaris) मारे गए, जिससे क़ुरान के लुप्त होने का खतरा हुआ।
- इस कारण, खलीफा अबू बक्र ने ज़ैद इब्न थाबित को क़ुरान को पहली बार संकलित करने का आदेश दिया।
🔹 यदि क़ुरान पूरी तरह से मौखिक रूप से संरक्षित था, तो इसे संकलित करने की आवश्यकता क्यों पड़ी?
🔹 यह दिखाता है कि क़ुरान के कुछ अंश खोने की संभावना थी।
3️⃣ संकलन: उस्मान द्वारा क़ुरान का मानकीकरण (650 CE)
- जब इस्लामी साम्राज्य बढ़ा, तो विभिन्न क्षेत्रों में क़ुरान की अलग-अलग पाठ्य विधियाँ (recitations) पाई गईं, जिससे विवाद उत्पन्न हुए।
- इस कारण, खलीफा उस्मान ने ज़ैद इब्न थाबित को फिर से क़ुरान को संकलित करने का आदेश दिया और अन्य सभी संस्करणों को जला दिया।
📖 सहीह बुखारी 4987
“उस्मान ने सभी क्षेत्रों में केवल एक आधिकारिक क़ुरान भेजा और बाकी सभी को जला देने का आदेश दिया।”

📖 सहीह बुखारी 4987
ज़ैफ़ा बिन अल-यमान ने उस्मान के पास आकर कहा: “इराक़ और शाम के लोगों ने कुरआन की तिलावत में इख़्तिलाफ़ करना शुरू कर दिया है। इससे पहले कि वे किताब के बारे में यहूदियों और ईसाइयों की तरह झगड़ें, आप (खलीफा) लोगों को एक ही मुसहफ़ पर इकट्ठा कर दीजिए।”
उस्मान ने हफ्सा से कहा: “हमें वो पांडुलिपियाँ (सहीफ़े) भेज दो ताकि हम उनकी नकलें तैयार करवा लें और फिर तुम्हें लौटा दें।”
फिर उस्मान ने ज़ैद बिन साबित, अब्दुल्लाह बिन अज़्ज़ुबैर, सईद बिन अल-आस और अब्दुर्रहमान बिन हारिस बिन हिशाम को बुलाकर कहा:
“यदि तुम और ज़ैद बिन साबित कुरान की किसी आयत के बारे में इख़्तिलाफ़ करो तो उसे क़ुरैश की बोली में लिखो, क्योंकि यह कुरान उनकी ज़बान में उतरा है।”
जब कई प्रतियां तैयार हो गईं, तो उस्मान ने मूल पांडुलिपियों को हफ़्सा को लौटा दिया और आदेश दिया कि अन्य सभी कुरान की सामग्री (चाहे वह खंडित रूप में हो या पूरी प्रतियों में) जला दी जाए।
🔹 यदि क़ुरान पूरी तरह संरक्षित था, तो अन्य संस्करणों को जलाने की आवश्यकता क्यों पड़ी?
🔹 इससे स्पष्ट होता है कि उस्मान के पहले क़ुरान की अलग-अलग प्रतियाँ मौजूद थीं।
3. खोई हुई आयतें और बदलाव
1️⃣ क़ुरान से गायब हुई आयतें
- कई हदीसें यह दर्शाती हैं कि कुछ आयतें खो गईं या भूल गईं।
- उदाहरण के लिए, व्यभिचार (अर्थात ज़िना) करने वालों को पत्थर मारकर मौत की सजा देने (रजम) की आयत अब के क़ुरान में नहीं है।

📖 सहीह मुस्लिम 1691
“उमर इब्न खत्ताब ने कहा: ‘अगर मुझे यह डर न होता कि लोग कहेंगे कि उमर ने क़ुरान में जोड़ दिया, तो मैं रजम (पत्थर मारने) की आयत लिखवा देता, क्योंकि हम इसे पढ़ा करते थे।'”
🔹 अगर अल्लाह ने क़ुरान की सुरक्षा की गारंटी दी थी, तो यह आयत कैसे गायब हो गई?
2️⃣ “बकरी ने आयत खा ली” घटना
📖 सुनन इब्न माजा 1944
“आयशा (मुहम्मद की पत्नी) ने कहा: ‘पत्थर मारने (रजम) और वयस्कों को दूध पिलाने की आयतें एक कागज पर लिखी हुई थीं और मेरे बिस्तर के नीचे रखी थीं। पैगंबर की मृत्यु के बाद एक बकरी आकर उन्हें खा गई।’”
🔹 अगर क़ुरान संरक्षित था, तो यह आयत क्यों खो गई?
🔹 यह दिखाता है कि लिखित क़ुरान का नुकसान संभव था।
4. कुरान में किरात और अहरुफ का विवाद
📖 सहीह बुखारी (2419) में वर्णित है कि उमर की किरात (पढ़ने की शैली) अलग थी और एक अन्य व्यक्ति की अलग थी। जब मोहम्मद साहब के पास यह मामला लाया गया, तो उन्होंने कहा, “दोनों की किरात सही हैं, क्योंकि कुरान 7 किरात में अवतरित हुआ है।”

परंतु इसी हदीस के उर्दू अनुवाद में “आहरूफ” (अरबी) शब्द को “किरात” कर दिया गया है।
किरात पढ़ने का तरीका होता है, जबकि अहरूफ शब्द होते हैं। अहरूफ का बदलना शब्दों के मायने बदल देता है।
इस हदीस के अनुसार कुरान की 7 किरात होनी चाहिए थी, लेकिन वर्तमान में दुनिया में 28 अलग-अलग संस्करण (वर्जन) मौजूद हैं।
कुरान के 10 प्रमुख क़िरात (पाठ्य संस्करण)
वर्तमान में 10 प्रमुख क़िरात स्वीकृत हैं, जिनमें से 7 मुतवातिर (प्रामाणिक) हैं और 3 मशहूर (लोकप्रिय) हैं।

मुतवातिर किरात:
1. नफी’ (मृत्यु 169/785)
2. इब्न कथिर (मृत्यु 120/737)
3. अबू ‘अम्र इब्न अल-‘अला’ (मृत्यु 154/762)
4. इब्न आमिर (मृत्यु 154/762)
5. ‘असिम (मृत्यु 127/744)
6. हमजा (मृत्यु 156/772)
7. अल-किसाई (मृत्यु 189/904)
मशहूर किरात:
8. अबू जाफर (मृत्यु 130/747)
9. याकूब (मृत्यु 205/820)
10. खलफ़ (मृत्यु 229/843)
भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अरब के कुछ देशों में असिम की हफ़्स किरात सबसे अधिक प्रचलित है।
मोरक्को और कुछ अन्य अफ्रीकी देशों में वर्श की किरात अधिक प्रचलित है।
5. क़ुरान की अलग-अलग पाठ्य विधियाँ (Recitations)
5.1 क़ुरान में उच्चारण और नुक्तों का प्रभाव
प्रारंभ में, कुरान में नुक्ते (बिंदु) और जबर-ज़ेर-पेश (स्वर चिह्न) नहीं थे।
बाद में, जब इनका समावेश किया गया, तो कुछ शब्दों के अर्थ बदल गए।

उदाहरण:
Surah Ahzab, Ayah 68:
“والعنهم لعنا كبيرا” (कबीर كبير – हफ़्स संस्करण) → अर्थ: “अल्लाह बड़ी सज़ा देगा।”
“والعنهم لعنا كثيرا” (कसीर كثير – वर्श संस्करण) → अर्थ: “अल्लाह कई सज़ाएँ देगा।”
इस प्रकार, शब्दों में छोटे परिवर्तन अर्थ को बदल सकते हैं।
5.2 कुरान के पुराने संस्करण और परिवर्तन
नौवीं सदी के ब्लू कुरान (Blue Quran) को इंटरनेट पर देखा जा सकता है, जो बिना नुक्तों (बिंदुओं) के लिखा गया था।
अल-इतिक़ान फी उलूम अल-कुरान (Al-Itqan fi ‘Ulum al-Qur’an) में अल-सुयुती लिखते हैं कि कुरान का कुछ हिस्सा नष्ट हो चुका है।
अबू उबैद कहते हैं: “इब्न उमर ने कहा कि कोई यह न कहे कि उसने पूरा कुरान ले लिया है, क्योंकि कुरान का बहुत-सा भाग नष्ट हो चुका है।”
मुअजम्मिल किरात कलेक्शन ऑफ कुरान पुस्तक में बताया गया है कि कुरान में समय के साथ बदलाव हुए हैं।

🔹 सनआ पांडुलिपि (Sana’a Manuscripts – 1972)
- 1972 में यमन के एक मस्जिद में प्राचीन क़ुरान की प्रतियाँ मिलीं, जिनकी तुलना आज के क़ुरान से करने पर भिन्नताएँ पाई गईं।
- जर्मन विद्वान डॉ. गेरार्ड पूइन (Dr. Gerd Puin) के अनुसार, यह पांडुलिपियाँ बताती हैं कि क़ुरान का पाठ्यक्रम (Text) प्रारंभिक काल में बदल गया था।
📖 (Dr. Gerd Puin, “Observations on Early Quranic Manuscripts”)
“प्रारंभिक इस्लामी काल में क़ुरान के पाठ में कई परिवर्तन हुए थे, जिन्हें बाद में मानकीकृत कर दिया गया।”
🔹 हफ़्स और वार्श क़िराअत (Hafs vs. Warsh Recitations)
- आज मुस्लिम दुनिया में हफ़्स क़िराअत (Hafs Recitation) सबसे प्रचलित है, लेकिन अफ्रीका में वार्श क़िराअत (Warsh Recitation) का प्रयोग होता है।
- इन दोनों में 1300 से अधिक शब्दों में अंतर पाया गया है।
डॉ. यासिर क़ादी, “The Crisis of Knowledge”)
“हर इस्लामी छात्र जानता है कि क़ुरान की अलग-अलग क़िराअत मौजूद हैं और उनमें अंतर हैं।”
🔹 अगर क़ुरान एक ही था, तो आज दो मुख्य संस्करण क्यों हैं?
📜 6. 1924 में हफ़्स कुरान का आधिकारिककरण

1924 में, अल-अजहर विश्वविद्यालय, मिस्र ने हफ़्स कुरान को आधिकारिक रूप से मान्यता दी और अन्य सभी अलग-अलग संस्करणों को हटा दिया।
इससे पहले, विभिन्न मदरसों में अलग-अलग कुरान पढ़ाए जाने के कारण छात्रों के बीच विवाद उत्पन्न हो रहे थे, क्योंकि प्रत्येक मदरसा अपनी किरात को सही मानता था।
5. निष्कर्ष: क्या क़ुरान पूरी तरह सुरक्षित है?
| ऐतिहासिक प्रमाण | क्या यह पूर्ण संरक्षण को सिद्ध करता है? |
|---|---|
| अबू बक्र की संकलन | दिखाता है कि क़ुरआन शुरू में अधूरा था |
| उस्मान द्वारा विभिन्न संस्करणों को जलाना | साबित करता है कि अनेक संस्करण मौजूद थे |
| खोई हुई आयतें (राज़्म, बकरी वाली घटना) | गायब सामग्री का संकेत देती हैं |
| सना पांडुलिपियाँ और हफ़्स/वर्श मतभेद | पाठ्य परिवर्तन की पुष्टि करती हैं |
निष्कर्ष:
👉 क़ुरान के संरक्षण का दावा ऐतिहासिक साक्ष्यों द्वारा पूरी तरह समर्थित नहीं है।
👉 इसके संकलन और मानकीकरण की प्रक्रिया में कई बदलाव हुए हैं।
इस प्रकार, विभिन्न ऐतिहासिक और ग्रंथीय स्रोत यह संकेत देते हैं कि कुरान के कई संस्करण मौजूद रहे हैं और उनमें समय के साथ बदलाव हुए हैं।
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