
हमारा उद्देश्य
हमने एक प्रयास शुरू किया है — “मेरे सवालों की किताब।”
यह किताब और इसके लेख उस विचारधारा पर रोशनी डालते हैं जो हमारे समाज, संस्कृति और भविष्य को चुनौती दे रही है।
यह किसी धर्म या व्यक्ति के विरोध में नहीं है।
हमारा मकसद है — उन खोखले नारों और भावनाओं के पीछे छिपे सच को सामने लाना, जो संविधान से ऊपर अपनी किताब को मानते हैं।
हम क्यों लिखते हैं?
- हम यह कार्य इसलिए नहीं कर रहे क्योंकि हमें किसी से नफरत है। बल्कि इसलिए कर रहे हैं क्योंकि हमें सच से प्रेम है।
- गहन अध्ययन और शोध के आधार पर।
- ताकि आप स्वयं देख सकें कि किताबों में लिखा सच क्या है और वह हमारे समाज को कैसे प्रभावित करता है।
- अगर आप मुसलमान हैं, तो आपको जानना चाहिए कि आपकी किताबों में इंसानियत के लिए वाकई क्या लिखा है।
- अगर आप हिंदू हैं, तो आपको यह जानना ज़रूरी है कि इस्लामी ग्रंथ आपके बारे में क्या कहते हैं।
क्योंकि चुप रहना अब विकल्प नहीं है।
आपका सहयोग क्यों ज़रूरी है?
हमारी “सवालों की किताब” केवल एक किताब नहीं, बल्कि समाज के सामने सच की रोशनी पहुँचाने का माध्यम है।
इसे छपवाकर और लोगों तक पहुँचाने के लिए हमें आपके सहयोग की आवश्यकता है — ताकि अधिक से अधिक लोग सच्चाई से रूबरू हो सकें।
हर लेख के पीछे छुपा होता है:
- घंटों का अध्ययन — क़ुरान, हदीस और इस्लामी इतिहास पर आधारित।
- तथ्यों की गहन जाँच-पड़ताल — ताकि कोई भी दावा केवल अनुमान न रहे।
- साफ़ और प्रमाणिक लेखन — जो आम पाठक आसानी से समझ सके।
यह सब केवल विचारों से नहीं, बल्कि समय, मेहनत और संसाधनों से संभव होता है।
आपका छोटा-सा सहयोग हमें और सशक्त बनाता है।
आपके समर्थन से हम:
- और गहन शोध कर सकेंगे।
- नए और तथ्यपरक लेख प्रस्तुत कर पाएँगे।
- और भी अधिक लोगों तक सच की आवाज़ पहुँचा पाएँगे।
आप कैसे मदद कर सकते हैं?
- आर्थिक सहयोग करें (UPI / PayPal / Card / Net Banking)
- इस विचार को दूसरों तक साझा करें
- सुझाव और सवाल भेजें
कैसे मदद करें?
नीचे दिए लिंक पर क्लिक करके आप अपना सहयोग भेज सकते हैं:
- आर्थिक सहयोग करें (UPI / PayPal / Card / Net Banking के माध्यम से)
- इस विचार को साझा करें
- औरों को प्रेरित करें जुड़ने के लिए
दान करने के लिए जानकारी:
समय की मांग: सच के लिए खड़े हो जाइए
आज खुलेआम कहा जाता है:
“हम संविधान नहीं मानते, कुरान पहले है।”
“राम मंदिर फिर से तोड़ देंगे।”
“सर तन से जुदा।”
ये सिर्फ शब्द नहीं हैं — यह एक विचारधारा है।
इसीलिए इसे समझना और उजागर करना ज़रूरी है।
अंतिम संदेश
“जब ज़माना खामोश हो, तब सच बोलना इबादत बन जाता है।
और जब सच बोलना खतरा बन जाए — तब उसे बोलना कर्तव्य है।”
- आपका छोटा सहयोग हमें सच की आवाज़ को और दूर तक पहुँचाने की ताक़त देगा।

Help Us
