जाहिलिय्या से इस्लाम: कन्या भ्रूण हत्या का ढोंग और महिलाओं का सच

परिचय

अगर इस्लाम ने सचमुच जाहिलिय्या की बेटियों को जिंदा दफन होने से बचाकर इज्जत देने का ढोल पीटा, तो इस्लाम के बाद एक भी खदीजा जैसी व्यापारिक दिग्गज या मायमूना जैसी रानी क्यों नहीं उभरी—क्या ये सब ढोंग और दिखावा नहीं था? जाहिलिय्या युग सामाजिक अन्याय और क्रूरता के लिए बदनाम था, जिसमें कन्या भ्रूण हत्या भी शामिल थी। कुरान और हदीस इसे रोकने का दावा करते हैं, लेकिन आलोचक कहते हैं कि यह महज एक नाटक था, जिसे इस्लाम ने महिलाओं को पर्दे की जंजीरों में जकड़ने और उनकी आजादी छीनने के लिए ढका-छुपा (“शुगरकोट”) कर पेश किया। यह लेख इस ढोंग को बेनकाब करता है।

1. कन्या भ्रूण हत्या का प्रचलन: ऐतिहासिक संदर्भ

  • खानाबदोश बेदुईन कबीले: कुछ गँवार कबीलों ने बेटियों को बोझ समझकर दफनाया।
  • शहरी कबीले: मक्का और यथरिब में यह प्रथा झूठ का पुलिंदा थी। कुरैश और बनू हाशिम जैसे कबीलों में महिलाएँ सत्ता की मालिक थीं। मिसाल:
    • खदीजा: व्यापारिक दिग्गज, जिसके नौकर थे मोहम्मद।
    • सफिया: बनू कुरैजा की रानी।
    • मायमूना: बनू हाशिम की रानी, जिसने मोहम्मद के “हिबा” माँगने पर ठेंगा दिखाया।
  • सच: नाबिघा धुब्यानी और इब्न हिशाम का हवाला देकर इसे हर जगह फैला बताना सरासर झूठ है।

2. कुरान में कन्या भ्रूण हत्या की निंदा

  • सूरह तकवीर (81:8-9): “जिंदा दफनाई लड़की से पूछा जाएगा कि उसका कसूर क्या था?”—बड़ा शोर मचाया, लेकिन क्या महिलाओं की हालत में सचमुच कोई बदलाव आया?

3. कारण या बहाना?

  • गरीबी का डर: कुछ कबीले बेटियों को खर्चा मानते थे।
  • युद्ध का बहाना: गुलामी से डर का रोना।
  • सवाल: अगर सचमुच बेटियों को ज़िंदा दफनाया जा रहा था, तो फिर पुरुषों के पास चार-चार बीवियाँ और दस-दस लौंडियाँ (दासियाँ) कहाँ से आतीं? 
  • ऐतिहासिक स्रोत यह पुष्टि करते हैं कि यह प्रथा सार्वभौमिक नहीं थी, बल्कि कुछ विशेष क़बीलों तक ही सीमित थी, जैसे बनू तमीम, बनू औस और बनू ख़ज़राज (मदीना के क़बीले)। उदाहरण के लिए, इब्न इस्हाक़ (सीरत रसूल अल्लाह, पृष्ठ 239, एड. गीयोम) और अल-तबरी (तारीख़ अल-रसूल वल-मुलूक, खंड 6, पृष्ठ 24) ने बनू तमीम में क़बीलों के बीच युद्धों के बाद बेटियों को दफनाने की कुछ घटनाओं का उल्लेख किया है। इसी तरह, हदीस साहित्य (सहीह मुस्लिम 3029) में क़ैस इब्न आसिम (बनू तमीम) का ज़िक्र है, जिसने इस्लाम से पहले अपनी बेटियों को ज़िंदा दफनाने की बात स्वीकार की थी। इन अभिलेखों से स्पष्ट होता है कि यह प्रथा अपवाद स्वरूप थी, न कि व्यापक, लेकिन बाद में इस्लाम ने इसे बड़े पैमाने पर अतिरंजित और नाटकीय ढंग से प्रचारित किया ताकि इसे सभ्यता सुधार के रूप में प्रस्तुत किया जा सके। 

4. इस्लाम का सुधार या महिलाओं की गुलामी?

  • मोहम्मद की बातें और उनका उलटा सच:
    • सहीह मुस्लिम (हदीस 2631): “दो बेटियों की परवरिश करने वाला मेरे साथ जन्नत में होगा।”—सुंदर बातें।
      • हकीकत: सहीह बुखारी (हदीस 7099): “औरत की हुकूमत वाला देश बर्बाद हो जाता है।”—तो बेटियाँ सिर्फ दिखावे की शोभा थीं?
    • सहीह मुस्लिम (हदीस 2631): “बेटी को नुकसान करने वाला जन्नत में जाएगा।”—खूबसूरत वादे।
      • हकीकत: सूरह निसा (4:34): “नाफरमान बीवियों को मारो।”—बेटियाँ बचीं, बीवियाँ मरीं।
      • हकीकत: सुनन नसाई 3963 : “आयशा बोलीं, ‘मोहम्मद ने मेरे सीने पर मारा, बहुत दर्द हुआ।'”—क्या यही है सम्मान का तमाशा?
  • महिलाओं का इतिहास:
    • खदीजा: व्यापारिक दिग्गज, जिसके आगे मोहम्मद झुकते थे।
    • सफिया: रानी, जिसे मोहम्मद ने हासिल किया।
    • मायमूना: रानी, जिसने मोहम्मद को लताड़ा।
    • उम्मे किरफा: बनू फज़ारा की रानी।
      • “मोहम्मद के हुक्म से ऊँटों से टुकड़े-टुकड़े करवाई गई।” (इब्न हिशाम)
      • “उसकी बेटी की खूबसूरती सुनकर मोहम्मद दो दिन तक सहाबा से माँगते रहे, सलमा ने कहा, ‘वो आपके लिए ही है।'” (सहीह मुस्लिम, हदीस 4345)
    • आमिना: खुद मोहम्मद की माँ, दूसरे कबीले से थीं।
  • कुफ्फार-ए-मक्का: 8-9 कबीलों में 6 में महिलाएँ रानियाँ थीं। मगर दो कबीलों का खेल इस्लाम ने पूरे धर्म पर थोप दिया।

5. सच का विश्लेषण

  • हद: बेटियाँ मारी जातीं, तो बीवियाँ कहाँ से आईं? यह चंद कबीलों का सच था।
  • ढोंग: इस्लाम ने इसे ढका-छुपा (“शुगरकोट”) ताकि औरतों को गुलाम बनाया जा सके और पर्दे में कैद किया जा सके।
  • उम्मे किरफा: उसकी बर्बर हत्या और बेटी का शिकार—क्या यह सम्मान है या हवस का खेल?

निष्कर्षकन्या भ्रूण हत्या कुछ कबीलों तक थी, लेकिन इस्लाम ने इसे ढोंग बनाकर औरतों की इज्जत का नारा लगाया। खदीजा इसका सबूत है कि जाहिलिय्या में औरतें आजाद थीं। अगर इस्लाम औरतों का मसीहा था, तो उसके सुनहरे दौर में एक भी खदीजा, उम्मे किरफा, या मायमूना क्यों नहीं पैदा हुई? क्या यह सब पर्दे और गुलामी का नाटक नहीं था, जिसने औरतों को जंजीरों में जकड़कर उनकी हस्ती मिटा दी?

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