इस्लामिक मांग और बंटवारे की सच्चाई: इतिहास का पर्दाफाश

Partition of India

परिचय

हमें पढ़ाया गया कि बंटवारा अंग्रेजों की चाल थी। पर क्या ये ही सच है? नहीं, ये मांग मुस्लिम लीग की थी, जिसने दो-राष्ट्र सिद्धांत थोपा और भारत को खून से बाँट दिया। आज कुछ कहते हैं, “हम भारत से प्यार करते थे, नेहरू ने ट्रेन रोकी तो रुक गए।” मगर सवाल उठता है—अगर प्यार था, तो 90% मुस्लिम वोट बंटवारे के पक्ष में क्यों पड़ा? ये लेख तथ्यों, मुस्लिम नेताओं के बयानों, इतिहासकारों की किताबों, और आंबेडकर-पटेल के विचारों से सच उजागर करता है। साथ ही, मुस्लिमों द्वारा किए नरसंहार—जैसे डायरेक्ट एक्शन डे—को भी सामने लाता है।

“सभी का खून शामिल है यहाँ की मिट्टी में” का ढोंग और बंटवारे का सच-

जो मुसलमान आज कहते हैं “सभी का खून शामिल है यहाँ की मिट्टी में,” वे एक कड़वा सच नकारते हैं। उनके बाप-दादा ने 1946 में बंटवारे के पक्ष में 90% वोट दिया था (रेफरेंस: The Sole Spokesman, Ayesha Jalal, 1985, पृ. 172)। तब तय हुआ था कि सारे मुसलमान पाकिस्तान जाएँगे और हिंदू भारत आएँगे। अविभाजित भारत में मुसलमानों की आबादी लगभग 3.7 करोड़ थी। 90% यानी सवा 3 करोड़ से ज्यादा ने बंटवारे को चुना। लेकिन हैरानी की बात—पाकिस्तान सिर्फ 72 लाख मुसलमान गए (रेफरेंस: 1951 पाकिस्तान जनगणना)। यानी 22% ही गए, और बंटवारे के पक्ष में वोट देने वाले 70% से ज्यादा मुसलमान भारत में ही रह गए।  

बंटवारे के नियमों के मुताबिक, जो यहाँ रुके, वे 1947 से 1950 तक भारत के मान्य नागरिक नहीं थे। उनकी नागरिकता अनिश्चित रही, जब तक कि नेहरू-लियाकत पैक्ट (8 अप्रैल 1950) ने उन्हें नागरिकता नहीं दी (रेफरेंस: The Text of Nehru-Liaquat Pact, 1950)। ये वही मुसलमान हैं, जिनके बाप-दादा ने हिंदुओं को “हिंदुस्तान” और खुद को “पाकिस्तान” देने का फैसला किया था। फिर आज ये उसी भारत पर हक कैसे जता सकते हैं, जिसे इन्होंने खून से बाँटकर हिंदुओं को सौंपा था?  

आज ये ढोंग करते हैं कि भारत उनका भी है। सच ये है—इन्होंने 90% वोट से भारत को हिंदू राष्ट्र बनाया और अब उसी पर दावा ठोकते हैं। इतिहास का ये सच न झुठलाया जा सकता है, न छिपाया। आइए, इस ढोंग के पीछे की सच्चाई को बेनकाब करें।

भाग 1: बंटवारे की मांग मुस्लिमों की थी—पुख्ता सबूत

1940 में लाहौर अधिवेशन में जिन्ना ने कहा: “हिंदू और मुसलमान दो अलग सभ्यताएँ हैं, जो कभी एक नहीं हो सकतीं।” (रेफरेंस: जिन्ना का लाहौर रिजॉल्यूशन, 23 मार्च 1940)। इतिहासकार स्टेनली वोल्पर्ट लिखते हैं: “जिन्ना ने मुस्लिम अलगाव को हवा दी।” (Jinnah of Pakistan, 1984, पृ. 182)।

1946 में मुस्लिम लीग को 86.6% मुस्लिम वोट मिले (रेफरेंस: The Sole Spokesman, Ayesha Jalal, 1985, पृ. 172)। चौधरी रहमत अली, जिन्होंने “पाकिस्तान” नाम दिया, ने 1933 में कहा: “हिंदुओं के साथ रहना इस्लाम का अपमान है।” (रेफरेंस: Now or Never Pamphlet, 1933)।

इतिहासकार आर.सी. मजूमदार लिखते हैं: “मुस्लिम लीग ने बंटवारे को अपरिहार्य बनाया।” (History of Freedom Movement in India, Vol. 3, 1963, पृ. 567)। मौलाना आजाद इसका विरोध करते थे, मगर लीग ने हिंसा से उनकी आवाज कुचल दी (रेफरेंस: Muslims Against Partition, Shamsul Islam, 2015, पृ. 45)।

भाग 2: नेहरू की ट्रेन और “प्यार” का झूठ

“नेहरू ने ट्रेनें रोकीं, इसलिए मुसलमान रुक गए”—ये बहाना है। 1950 के नेहरू-लियाकत समझौते से पहले 72 लाख मुसलमान पाकिस्तान गए (रेफरेंस: 1951 पाकिस्तान जनगणना)। जो रुके, वो मजबूरी में—हिंसा, गरीबी, या जमीन-जायदाद जिसे वो वक्त रहते बेच नहीं सके।

आंबेडकर लिखते हैं: “90% मुसलमानों ने पाकिस्तान चुना। प्यार का दावा ढोंग है।” (Pakistan or The Partition of India, 1946, पृ. 116)। पटेल ने कहा: “मुसलमानों ने अपना राष्ट्र बनाया, अब यहाँ वफादारी दिखाएँ।” (रेफरेंस: Sardar Patel’s Correspondence, Vol. 6, 1948)। इतिहासकार यास्मीन खान लिखती हैं: “रहना मजबूरी थी, प्यार नहीं।” (The Great Partition, 2007, पृ. 135)। अगर प्यार था, तो “लड़के लेंगे पाकिस्तान” का नारा क्यों गूँजा?

विभाजन धार्मिक आधार पर हुआ था, और मुस्लिम लीग ने इसे इस्लाम के लिए अलग राष्ट्र के रूप में पेश किया था।

भाग 3: हिंदू राष्ट्र का सच—मुस्लिमों ने बनाया

बंटवारे से भारत हिंदू-बहुल और पाकिस्तान मुस्लिम-बहुल बना। ये मुस्लिम लीग का फैसला था। आंबेडकर लिखते हैं: “विभाजन धार्मिक था। भारत हिंदू राष्ट्र है—ये मुस्लिम मांग का नतीजा है।” (Pakistan or The Partition of India, पृ. 352)। पटेल ने कहा: “हमें हिंदू हिस्सा मिला, क्योंकि मुसलमानों ने अपना ले लिया।” (रेफरेंस: The Transfer of Power, Vol. 11, 3 जून 1947)। वी.डी. सावरकर ने लिखा: “भारत हिंदुओं का है—मुस्लिमों ने इसे बाँटकर साबित कर दिया।” (Hindutva: Who is a Hindu?, 1923, पृ. 92)।

भाग 4: नरसंहार और डायरेक्ट एक्शन डे—खून का खेल

16 अगस्त 1946, डायरेक्ट एक्शन डे। मुस्लिम लीग का नारा: “लड़के लेंगे पाकिस्तान, खेलेंगे हिंदुओं के खून से होली।” (रेफरेंस: Midnight’s Furies, Nisid Hajari, 2015, पृ. 43) और इस नारे को बोलने वाले को 90 % मुसलमान वोट दे रहे थे क्या यही प्यार और भाई चारा था? कलकत्ता में 5,000+ हिंदू मरे। विलियम डालरिंपल लिखते हैं: “ये सुनियोजित था।” (The New Yorker, 2015)। नोआखाली में हिंदुओं का कत्लेआम—लाखों बेघर, हजारों मरे (रेफरेंस: The Great Partition, पृ. 98)। जिन्ना ने कहा: “हमें खून से डरना नहीं चाहिए।” (रेफरेंस: जिन्ना का भाषण, 1946, Jinnah Papers)। 

भाग 5: गांधी, नेहरू और मुस्लिम नागरिकता का खेल

गांधी ने एकता और शांति की अपील की थी, पर इसका कोई कानूनी आधार नहीं था। आंबेडकर ने कहा: “मुसलमानों का भारत में रहना विभाजन के सिद्धांत के खिलाफ है।” (Pakistan or The Partition of India, पृ. 330)। 1951 की जनगणना के अनुसार भारत में 3.5 करोड़ मुसलमान थे, जिनमें से ज्यादातर पहले से यहाँ रहते थे।

नेहरू-लियाकत समझौता (8 अप्रैल 1950) कहता है: “दोनों देश अपने-अपने अल्पसंख्यकों को नागरिकता और सुरक्षा देंगे।” (रेफरेंस: The Text of Nehru-Liaquat Pact, 1950)। इससे पहले मुसलमानों की नागरिकता अनिश्चित थी, पर संविधान लागू होने (26 जनवरी 1950) के बाद भारत में रहने वाले सभी को नागरिकता मिली। पटेल ने मुसलमानों को पाकिस्तान जाने के लिए प्रेरित किया था (रेफरेंस: Sardar Patel’s Correspondence, Vol. 7, 1948)। नेहरू ने वोटबैंक की राजनीति के लिए इसे रोका (रेफरेंस: India After Gandhi, Ramachandra Guha, 2007, पृ. 107)।

निष्कर्ष—सच का तीखा वार

बंटवारा अंग्रेजों का नहीं, मुस्लिम लीग की मांग था—90% वोट, जिन्ना के बयान, और खून से लिखा इतिहास इसका सबूत है। “प्यार” का ढोंग मत करो—जो रुके, वो मजबूरी में रुके। भारत हिंदू राष्ट्र है, क्योंकि मुसलमानों ने 1947 में इसे ऐसा बनाया—आंबेडकर, पटेल, सावरकर सब कहते हैं। डायरेक्ट एक्शन डे का खून भूलने वाले आज “सभी का खून शामिल है यहाँ की मिट्टी में” का गीत गाते हैं। सवाल ये—जब टुकड़े किए, तब ये प्यार कहाँ था?

नेहरू ने अपने निहित स्वार्थ के लिए मुसलमानों को रोका, हालाँकि कानूनी तौर पर उनकी नागरिकता 1950 तक अनिश्चित थी। सच कड़वा है, मगर झूठ की चादर से ढक नहीं सकता। इतिहास चीखता है—बंटवारा इस्लाम की मांग था, और उसकी कीमत हिंदुओं ने चुकाई। 

अब ढोंग छोड़ो और एक संविधान का हिस्सा बनो—एक देश, एक कानून। अलग कानून की मांग फिर से अलग हिस्से की मांग जैसी है, जैसा 1947 में तुम्हारे बाप-दादा ने किया था।

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