मुश्रिक खानदान का सच: पैगंबर के माता-पिता और जहन्नम की सजा

परिचय

पैगंबर मुहम्मद (ﷺ) के माता-पिता, हज़रत अब्दुल्लाह और हज़रत आमिना, की आख़िरत की स्थिति इस्लामी इतिहास का एक ऐसा सवाल है, जिस पर विद्वानों ने पर्दा डालने की कोशिश की है। लेकिन कुरआन का स्पष्ट कलाम और हदीस की प्रामाणिक रिवायतें एक कड़वा सच सामने लाती हैं: वे जहन्नम में हैं। उनके खानदान का काबा से रिश्ता, उनके घर में बुतों की मौजूदगी, और इस्लाम से पहले उनकी मृत्यु इस बात की पुष्टि करती है कि वे मुश्रिक थे। अल्लाह का फ़रमान है कि मुश्रिकों का ठिकाना जहन्नम है, और पैगंबर (ﷺ) की दो हदीसें इस आग में तेल डालती हैं। यह लेख साबित करता है कि हज़रत अब्दुल्लाह और हज़रत आमिना, कुरआन और अल्लाह के कलाम के हिसाब से, जहन्नम के हक़दार हैं—कोई बहाना, कोई ढोंग इस सच को नहीं बदल सकता।

ऐतिहासिक सच्चाई: मुश्रिक खानदान और काबा की चाबी

हज़रत अब्दुल्लाह और हज़रत आमिना कुरैश के बनी हाशिम कबीले से थे, जिसके पास काबा की चाबी और उसकी देखभाल की ज़िम्मेदारी थी। लेकिन यह सम्मान उनके लिए श्राप बन गया, क्योंकि उस समय काबा में 360 बुत रखे हुए थे। इब्न हिशाम (सीरत अल-नबविय्या) और तबरी (तारीख अल-रुसुल वल-मुलूक) के अनुसार, कुरैश कबीला शिर्क में डूबा हुआ था। हज़रत अब्दुल मुत्तलिब, जो पैगंबर के दादा थे, काबा के रखवाले थे और स्वयं बुतों की पूजा में शामिल थे। उनके बेटे अब्दुल्लाह और बहू आमिना भी इसी माहौल में पले-बढ़े।

  • काबा में बुत: कुरआन (सूरह अल-हज 22:26) में काबा को अल्लाह के लिए शुद्ध करने का ज़िक्र है, जो पैगंबर (ﷺ) ने बाद में किया। इससे पहले यह शिर्क का अड्डा था। अब्दुल्लाह और आमिना उस दौर का हिस्सा थे।
  • पैगंबर के घर में बुत: एक रिवायत (Sahih Muslim 2104, Jami’ at-Tirmidhi 2806, Sunan Abi Dawud 4158) में दर्ज है कि जब जिब्राइल (अ.स.) पहली बार पैगंबर (ﷺ) के पास वही लेकर आए, तो उन्होंने हज़रत खदीजा से कहा, “कुत्तों और बुतों को हटाओ, पर्दे पर जो तस्वीरें हैं उन्हें हटाओ, तभी मैं अंदर आऊँगा।” इसका मतलब साफ है: पैगंबर का घर भी इस्लाम से पहले शिर्क से खाली नहीं था। यदि पैगंबर का घर ऐसा था, तो उनके माता-पिता की स्थिति क्या रही होगी?
Jami' at-Tirmidhi 2806
Scan from sunna.com
Sahih Muslim 2104
Scan from sunna.com
Sunan Abi Dawud 4158
Scan from sunna.com

यह साबित करता है कि हज़रत अब्दुल्लाह और हज़रत आमिना मुश्रिक थे। अब्दुल्लाह का निधन पैगंबर के जन्म से पहले हो गया, और आमिना की मृत्यु उनकी उम्र 6 साल होने पर हुई। दोनों ने कभी कलमा नहीं पढ़ा, क्योंकि इस्लाम उनके सामने आया ही नहीं।

कुरआन का फ़रमान: मुश्रिकों का ठिकाना जहन्नम

अल्लाह का कलाम इस मसले पर कोई गुंजाइश नहीं छोड़ता। कुरआन में मुश्रिकों की नियति स्पष्ट रूप से बयान की गई है:

  • सूरह अल-बक़रा 2:161-162:
    “जो लोग काफ़िर होकर मरते हैं, उन पर अल्लाह, फ़रिश्तों और सारे इंसानों की लानत है। वे उसमें (जहन्नम में) हमेशा रहेंगे, न उनकी सज़ा हल्की होगी, न उन्हें राहत दी जाएगी।”
    अब्दुल्लाह और आमिना ने अल्लाह पर ईमान नहीं लाया, क्योंकि उनके सामने कोई रसूल नहीं आया था। फिर भी, वे शिर्क में मरे।
  • सूरह अत-तौबा 9:113:
    “नबी और मोमिनों को यह शोभा नहीं देता कि वे मुश्रिकों के लिए माफी माँगें, चाहे वे कितने ही करीबी रिश्तेदार क्यों न हों, जब यह साफ़ हो चुका है कि वे जहन्नम में जाने वाले हैं।”
    यह आयत पैगंबर पर भी लागू होती है। यदि उनके माता-पिता मुश्रिक थे, तो उनकी माफी माँगने की इजाज़त क्यों नहीं होगी?

जन्नत का पहला नियम है अल्लाह और आख़िरत पर ईमान की शहादत देना। हज़रत अब्दुल्लाह और हज़रत आमिना ने ऐसा नहीं किया। कुरआन का फ़ैसला साफ है: मुश्रिक जहन्नम में जाएगा।

हदीस का सबूत: पैगंबर की पुष्टि

दो प्रामाणिक हदीसें इस सच को और पक्का करती हैं:

  • पिता के लिए जहन्नम (सही मुस्लिम, हदीस 203):
    हज़रत अनस (रज़ि.) से रिवायत है कि एक शख्स ने पूछा, “मेरे पिता कहाँ हैं?” पैगंबर (ﷺ) ने कहा, “आग में।” फिर फरमाया, “मेरे पिता और तुम्हारे पिता आग में हैं।”
    यह हदीस स्पष्ट रूप से कहती है कि हज़रत अब्दुल्लाह जहन्नम में हैं। कुछ विद्वान इसे सामान्य बयान कहते हैं, लेकिन शब्द “मेरे पिता” इसमें कोई शक नहीं छोड़ते।
  • माँ के लिए इस्तिग़फ़ार की मनाही (सही मुस्लिम, हदीस 976A):
    हज़रत अबू हुरैरा (रज़ि.) से रिवायत है कि पैगंबर (ﷺ) अपनी माँ की कब्र पर गए, रोए, और कहा, “मैंने अपने रब से इजाज़त माँगी कि अपनी माँ के लिए माफी माँगूँ, लेकिन मुझे इजाज़त नहीं दी गई।”
    यदि हज़रत आमिना की माफी संभव होती, तो अल्लाह पैगंबर को रोकते क्यों? इसका मतलब उनकी जहन्नम की नियति तय थी।
Sahi Muslim 976A
Scan from Quran.com
Sahi Muslim 203
Scan from sunna.com

ये हदीसें कुरआन के साथ मिलकर एक ही नतीजा देती हैं: पैगंबर के माता-पिता जहन्नम में हैं।

विद्वानों का ढोंग: सच को छिपाने की कोशिश

कई विद्वान इस सच से मुँह मोड़ते हैं। वे कहते हैं:

  • फ़तरा का दौर: अब्दुल्लाह और आमिना इस्लाम से पहले मरे, जब कोई पैगंबर नहीं था। सही बुखारी (हदीस 1358) के अनुसार, ऐसे लोगों का हिसाब अलग होगा।
  • पैगंबर की शान: उनकी शुद्ध नस्ल (सूरह अश-शूरा 26:219) की वजह से माता-पिता को जहन्नम से बचाया जाएगा।

लेकिन ये बहाने कमज़ोर हैं:

  • फ़तरा का दौर हो या न हो, कुरआन (सूरह अल-बक़रा 2:119) कहता है कि हर कौम को हिदायत दी गई। कुरैश के पास हज़रत इब्राहिम (अ.स.) की तौहीद की विरासत थी, जिसे उन्होंने ठुकराया।
  • पैगंबर की शान उनके अपने कर्मों से है, न कि माता-पिता की नियति से। कुरआन (सूरह अल-इस्रा 17:15) कहता है कि कोई किसी और के गुनाह का बोझ नहीं उठाएगा।

इमाम नववी और इब्न तैमिय्या जैसे विद्वान सही थे: मुश्रिक होने की वजह से उनकी नियति जहन्नम है। बाकी विद्वानों का तर्क भावनाओं का ढोंग है।

निष्कर्ष: आग लगाने वाला सचहज़रत अब्दुल्लाह और हज़रत आमिना मुश्रिक थे—यह काबा की चाबी और पैगंबर के घर में बुतों से साबित होता है। कुरआन (सूरह अत-तौबा 9:113) स्पष्ट रूप से कहता है कि मुश्रिक जहन्नम में जाएँगे। हदीसें (सही मुस्लिम 203 और 976) इसकी पुष्टि करती हैं: पैगंबर के पिता आग में हैं, और माँ के लिए माफी की गुंजाइश नहीं है। वे इस्लाम से पहले मरे, कलमा नहीं पढ़ा, और जन्नत का पहला नियम—ईमान की शहादत—उनके पास नहीं था। अल्लाह का फ़रमान और पैगंबर की बात सच को उजागर करते हैं: पैगंबर (ﷺ) के माता-पिता जहन्नम में हैं। इसे नकारना कुरआन और हदीस से मुँह मोड़ना है। सच सामने है—यह आग अब बुझ नहीं सकती।

📢 यह लेख आपको उपयोगी लगा?
🙏 हमारे प्रयास को support करने के लिए यहाँ क्लिक करें

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
Scroll to Top