सनातन दर्शन में सृष्टि का सृजन

नादः सृष्टेः प्रथमः श्वासः, ओंकारः तस्य हृदय-स्पन्दनम्।
यत्र मौनं परं ब्रह्म भवति, तत्र विज्ञानं अपि नम्रं तिष्ठति॥

अर्थ –
नाद सृष्टि की पहली श्वास है, ‘ॐ’ उसका हृदय-स्पंदन है।
जहाँ मौन स्वयं ब्रह्म बन जाता है,वहाँ विज्ञान भी विनम्र होकर नतमस्तक हो जाता है।

परिचय : नाद से ब्रह्म तक – विज्ञान और वेदांत का सेतु

वेद कहते हैं – “नादोऽस्य जन्मनि कारणं।”
अर्थात् नाद ही सृष्टि का प्रथम कारण है – वह अनाहत स्पंदन जिससे चेतना ने रूप लिया और ब्रह्मांड प्रकट हुआ। आधुनिक विज्ञान इसी सत्य को अपने प्रयोगों में क्वांटम वाइब्रेशन, हिग्स फील्ड और कॉस्मिक एनर्जी के रूप में खोजता है।

वेदांत “ॐ” को ब्रह्म का श्रवणीय रूप कहता है, और विज्ञान इसे ब्रह्मांड की प्रारंभिक ध्वनि “Cosmic Background Vibration” मानता है। यह लेख “नाद से ब्रह्म तक” उस संगम की यात्रा है जहाँ ऋषियों की अनुभूति और वैज्ञानिकों के सिद्धांत एक ही सत्य की ओर संकेत करते हैं – कि सृष्टि का मूल पदार्थ नहीं, चेतना का कंपन है।

यह कोई धार्मिक व्याख्या नहीं, बल्कि ऊर्जा, चेतना और अस्तित्व की एक समग्र खोज है, जहाँ “ॐ” विज्ञान के सूत्रों से जुड़ता है,
शिव का ताण्डव क्वांटम नृत्य बनता है, और मानव चेतना ब्रह्मांड की प्रतिध्वनि बन जाती है।

“आइए, भारतीय दर्शन में सृष्टि की उत्पत्ति के सिद्धांत को आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर परखें।”

📜 अध्याय सूची (Index)

भूमिका : सृष्टि: चेतना, नाद और विज्ञान का संवाद

अध्याय 1 : सृष्टि — निर्माण नहीं, प्रकट होना
अध्याय 2 : नाद, चेतना और आधुनिक विज्ञान
अध्याय 3 : चेतना का ब्रह्मस्वरूप और नाद की ब्रह्ममयता
अध्याय 4 : पुरुष और प्रकृति का नादमय संवाद
अध्याय 5 : शिव का कॉस्मिक नृत्य — नाद से नियति तक
अध्याय 6 : ओंकार और कॉस्मिक वाइब्रेशन — ब्रह्म का श्रवणीय स्वरूप
अध्याय 7 : ब्रह्मांडीय चेतना और मानव मस्तिष्क — सूक्ष्म जगत में नाद की प्रतिध्वनि

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