
शरीयत की अदालत: विरोध करो तो फसाद, बोलो तो बग़ावत
1. प्रस्तावना
शरीयत सिर्फ़ नमाज़-रोज़ा या आध्यात्मिक जीवन तक सीमित नहीं है। यह एक पूरा कानूनी सिस्टम है — जिसमें अपराध और उनकी सजाएँ कुरआन, हदीस और फिक़्ह पर आधारित होती हैं। इसमें चोरी, विद्रोह, औरत की गवाही से लेकर शराब पीने तक की सजाएँ तय हैं। ये सजाएँ मानवाधिकार मानकों और आधुनिक दुनिया के लिए अब सवाल बन चुकी हैं।
2. फसाद फ़िल अरज़ — “धरती पर भ्रष्टाचार”
आयत: कुरआन 5:33–34
सज़ाएँ: मौत, सूली, हाथ-पाँव काटना, निर्वासन।
वास्तविक केस:
- ईरान (2022) — महसा अमीनी की मौत पर विरोध करने वालों को “फसाद फ़िल अरज़” का आरोप लगाकर मौत की सज़ा।
- सऊदी अरब (2016) — शेख निम्र अल-निम्र को इसी आरोप में फाँसी।
सवाल: क्या सरकार का विरोध करना अब कुरआन के हिसाब से धरती पर फ़साद हो गया?
3. बग़ी (بغی) — “विद्रोह”
आयत: कुरआन 49:9
सज़ा: जान से मारना, संपत्ति जब्त।
वास्तविक केस:

- सीरिया — असद शासन और विद्रोही दोनों एक-दूसरे को “बग़ी” कहकर कत्लेआम करते रहे।
- सूडान (2014) — प्रदर्शनकारियों को “बग़ी” कहकर मौत की सज़ा।
सवाल: क्या शरीयत का यह कानून असली अपराधियों को पकड़ने के लिए है, या राजनीतिक विरोधियों को कुचलने का हथियार?
4. हुदूद — “अल्लाह द्वारा तय की हुई सजाएँ”
- चोरी: हाथ काटना (5:38)
- ज़िना (व्यभिचार): शादीशुदा — पत्थर मारकर मौत; अविवाहित — 100 कोड़े (24:2)
- झूठा इल्ज़ाम (क़ज़्फ़): 80 कोड़े (24:4)
- शराब: 40–80 कोड़े (हदीस)
वास्तविक केस:
- नाइजीरिया (2002) — अमीना लावाल को व्यभिचार के आरोप में पत्थर मारने की सज़ा (बाद में रद्द)।
- सूडान (2012) — एक महिला को व्यभिचार के आरोप में पत्थर मारने की सज़ा (बाद में पलटी गई)।
सवाल: क्या इंसाफ़ का मतलब हाथ काटना और शरीर को अदालत बना देना है?
5. महिलाएँ शरीयत के तहत
- गवाही: एक पुरुष = दो महिला (2:282)
- विरासत: पुरुष को महिला से दोगुना हिस्सा (4:11)
- हिजाब: कुरआन 24:31, 33:59
- निकाह-तलाक: पुरुष को त्वरित अधिकार, महिला को सीमित।
वास्तविक केस:

- ईरान (2022–23) — हिजाब कानून के खिलाफ प्रदर्शन करने पर महिलाओं को जेल और मौत की सज़ाएँ।
- सऊदी अरब — 2010 तक महिलाओं को गाड़ी चलाने की पाबंदी; अब भी पुरुष संरक्षक (guardian) की इजाज़त ज़रूरी।
सवाल: क्या बराबरी का दावा करना यहाँ “कितमान” (छुपाना) नहीं है?
6. निष्कर्ष
भारत और यूरोप में रहने वाले मुसलमान बराबरी की शिकायत करते हैं। लेकिन वही लोग अगर किसी शरीयत वाले देश में बोलें — तो शायद उन पर फसाद फ़िल अरज़ या बग़ावत का मुक़दमा चल जाए।
असल सवाल: शरीयत आस्था का नियम है — या सत्ता पर पकड़ का औज़ार?
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“जहाँ शरीयत लागू नहीं है — यूरोप-अमेरिका के मुस्लिम समाज, पाकिस्तानी रेप गैंग, भारत का लव जिहाद और दंगों की हकीकत।”
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