
पैगंबर मुहम्मद का परिवारिक परिचय
पैगंबर मुहम्मद (ﷺ) के पिता का नाम अब्दुल्लाह था और माता का नाम आमिना बिंत वहब। अब्दुल्लाह के पिता यानी मुहम्मद के दादा थे अब्दुल मुत्तलिब, जो मक्का में काबा के संरक्षक और कुरैश कबीले के प्रमुख व्यक्ति माने जाते थे। अब्दुल मुत्तलिब के कई बेटे थे, जिनमें एक थे अब्दुल्लाह (मुहम्मद के पिता) और एक अन्य थे हमज़ा इब्न अब्दुल मुत्तलिब, जो पैगंबर मुहम्मद के चाचा माने जाते हैं। वंशानुक्रम की दृष्टि से हमज़ा उनके चाचा थे। हालांकि हमज़ा और मुहम्मद के जन्म का समय आस पास का है और यही इस लेख का मूल भी है
परिचय
इस्लामी इतिहास में पैगंबर मुहम्मद (ﷺ) के जन्म का समय एक ऐसी पहेली है, जिसके पीछे कई गहरे सवाल छिपे हैं। पारंपरिक रिवायतें बताती हैं कि पैगंबर (ﷺ) अपने पिता हज़रत अब्दुल्लाह की वफात के कुछ महीनों बाद पैदा हुए, जब उनकी माँ हज़रत आमिना गर्भवती थीं।
लेकिन प्राचीन स्रोतों और फिक़्ही व्याख्याओं की गहराई से पड़ताल करने पर यह संकेत मिलता है कि पैगंबर के जन्म और उनके पिता हज़रत अब्दुल्लाह की मृत्यु के बीच 2 से 4 साल का समयांतर रहा हो सकता है। यह समयांतर सामान्य गर्भावस्था की अवधि (9–10 महीने) को चुनौती देता है और इस्लामी फिक़्ह में लंबे गर्भकाल (2–4 साल) की अवधारणा का कारण भी बनता प्रतीत होता है।
ऐतिहासिक आधार
यह लंबे गर्भकाल की अवधारणा मुख्य रूप से हज़रत हमज़ा बिन अब्दुल मुत्तलिब की उम्र और हज़रत अब्दुल्लाह की वफात की समयरेखा पर आधारित है।

1. शादी का समय और हज़रत हमज़ा
सबसे प्राचीन और प्रामाणिक स्रोत — इब्न इस्हाक़ (सीरत रसूल अल्लाह), इब्न हिशाम (सीरत अल-नबविय्या) और इब्न साद (तबक़ात अल-कुबरा) — स्पष्ट रूप से उल्लेख करते हैं कि अब्दुल मुत्तलिब और उनके पुत्र अब्दुल्लाह की शादियाँ एक ही दिन हुईं। अब्दुल मुत्तलिब (दादा) ने हाला बिन्त वहब से और अब्दुल्लाह (पिता) ने आमिना बिन्त वहब से निकाह किया।
2. हमज़ा और मुहम्मद (ﷺ) की उम्र में अंतर
परंपरागत दावे के अनुसार, हज़रत हमज़ा पैगंबर से 2 से 4 वर्ष बड़े थे।
- चार वर्ष बड़े:
“كان حمزة أسن من رسول الله بأربع سنين”
(हमज़ा पैगंबर से चार वर्ष बड़े थे)
— Ibn Sa’d, Tabaqat al-Kubra (Al-Waqidi के हवाले से) - दो वर्ष बड़े:
Ibn Sayyid al-Nas के अनुसार हमज़ा और मुहम्मद (ﷺ) दोनों ने Thuwayba नामक दाई का दूध पिया। यदि दोनों दूध-भाई थे, तो चार वर्ष का अंतर अवास्तविक प्रतीत होता है। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि हमज़ा अधिकतम दो वर्ष बड़े हो सकते हैं।
— Uyun al-Athar – Ibn Sayyid al-Nas

हालांकि अधिकांश शुरुआती विद्वान 4 वर्षों के अंतर को ही मान्यता देते हैं। इब्न अब्दुल बर्र (अल-इस्तियाब) ने भी यही मत प्रस्तुत किया।
3. हज़रत अब्दुल्लाह की वफात
रिवायतों के अनुसार, अब्दुल्लाह निकाह के कुछ सप्ताह बाद व्यापार के लिए शाम गए और वापसी में मदीना में उनकी मृत्यु हो गई।
“अब्दुल्लाह और आमिना की साथ की अवधि बहुत कम थी, क्योंकि अब्दुल्लाह जल्दी ही व्यापार के लिए रवाना हुए और वहीं मृत्यु हो गई।”
स्रोत:
- Ibn Sa’d – Tabaqat al-Kubra
- Ibn Hisham – Sirat Rasul Allah
- Al-Tabari – Tarikh al-Rusul wal-Muluk

समस्या की जड़
अब तक प्राप्त तथ्यों के अनुसार:
- अब्दुल मुत्तलिब और अब्दुल्लाह की शादियाँ एक ही दिन हुईं।
- हमज़ा पैगंबर से 2–4 वर्ष बड़े थे।
- अब्दुल्लाह शीघ्र ही व्यापार पर रवाना होकर मदीना में वफात पा गए।
इन तथ्यों को एक साथ रखने पर एक गंभीर समय-संबंधी विरोधाभास उत्पन्न होता है।
यदि अब्दुल मुत्तलिब की पत्नी हाला तुरंत गर्भवती हुईं और सामान्य 9 माह में संतान हुई (जैसे हमज़ा), और आमिना का गर्भ कुछ महीनों बाद ठहरा, तब भी अधिकतम आयु अंतर 4–6 महीने ही हो सकता है। यदि अमीना अब्दुल्ला के तिजारत पर जाने के अंतिम कुछ समय में गर्भवती हुई हो तो।
लेकिन यदि हमज़ा 2 या 4 साल बड़े हैं, तो इस मत को मानना पड़ता है कि हज़रत आमिना ने अत्यंत लंबी गर्भावस्था (2–4 वर्ष) झेली — जो कि जैविक या विज्ञान के दृष्टिकोण से असंभव है।

सारी समस्या यही से आती है कि अगर हमजा मुहम्मद साहब से 2 या 4 साल बड़े होना सच है तो यह यह मानना मज़बूरी हो जाती है कि इतने लंबे समय तक मुहम्मद साहब हजरत अमीना के गर्भ में रहे, क्युकी उनके पिता अब्दुल्ला की मृत्यु हो चुकी है तो बाद में माता अमीना के गर्भ धारण करने की संभावना नहीं बनती, और सारी रवायतें कहती हैं कि अब्दुल्ला के तिजारत पर जाने से पहले अमीना गर्भवती हो चुकी थीं।
फिक़्ह में लंबी गर्भावस्था: क्या एक व्याख्यात्मक उपाय था?
इस विरोधाभास को हल करने के लिए इस्लामी फिक़्ह में गर्भावस्था की असाधारण अवधियों को मान्यता दी गई:
चारों सुन्नी मज़हबों के मत:
- हनफ़ी: अधिकतम 2 साल — (सूरह अहक़ाफ़ 46:15, लुक़मान 31:14 के हवाले से)
- मालिकी, शाफ़िई, हंबली: अधिकतम 4 साल — (अल-मुदव्वना, अल-उम्म, मुसनद अहमद)
फिक़्ही कानूनों में उदाहरण
“यदि कोई स्त्री अपने पति की मृत्यु या ग़ायब होने के दो वर्ष में संतान जन्म देती है, और कोई प्रमाण न हो जो यह असंभव सिद्ध करे — तो संतान उसी पति की मानी जाएगी।”
— Al-Hidayah, Vol 2, Kitab al-Nikah
— Hidayah, Charles Hamilton translation
— मुसन्नफ इब्न अबी शैबा (हदीस 23456): हज़रत उमर के समय एक महिला ने पति की अनुपस्थिति में 2 वर्ष बाद संतान जन्मी और उसे वैध माना गया।

यह स्पष्ट करता है कि यह नियम संभवतः उन्हीं असामान्य परिस्थितियों को वैधता देने के लिए बना, जिसमें पैगंबर के जन्म का मामला भी सम्मिलित था।
तफ़सीर और कथाएँ: लंबी गर्भावस्था की वैचारिक पृष्ठभूमि
इस मान्यता को धार्मिक रूप से पुख़्ता करने के लिए कई रिवायतें और कथाएँ प्रस्तुत की गईं:
- इमाम मालिक – अल-मुवत्ता Kitab al-Talaq
“إنّ المرأة قد تحمل في بطنها سنين”
(औरत कई वर्षों तक गर्भ धारण कर सकती है) - हमल अल-फील (हाथी की गर्भावस्था)
इमाम मालिक से एक कहानी मंसूब है एक महिला 4 साल बाद संतान जन्म देती है, जिसके बाल और दांत पहले से विकसित होते हैं।

- हज़रत उमर का प्रसंग
एक व्यक्ति 2 वर्षों तक अनुपस्थित रहता है, और उसकी पत्नी गर्भवती हो जाती है। हस्तक्षेप के बाद जन्म का इंतज़ार किया जाता है, और बच्चा दांतों के साथ पैदा होता है — नाम रखा गया सहाक
— Al-Isti’ab – Ibn Abd al-Barr - अब्बाद बिन अवाम
एक लौंडी 4 साल बाद संतान जन्मती है, जिसके बाल कंधों तक होते हैं।
ये कथाएँ अत्यधिक असामान्य प्रतीत होती हैं, और इनका वैज्ञानिक आधार नहीं है। फिर भी, इनका उल्लेख केवल एक विशिष्ट उद्देश्य — पैगंबर के जन्म में देरी को धार्मिक स्वीकृति देने — के लिए हुआ जान पड़ता है।
बाद के विद्वानों के प्रयास: विरोधाभास को ढंकने की कोशिश
बाद के विद्वानों (जैसे ज़ुर्कानी – शरह अल-मवाहिब 1600 ईस्वी) ने हमज़ा और पैगंबर की उम्र में अंतर को “लगभग बराबर” बताकर इस विरोधाभास को हल करने का प्रयास किया।
लेकिन:

- प्रारंभिक स्रोत (इब्न इस्हाक़, इब्न हिशाम, इब्न साद) ज्यादा विश्वसनीय हैं, क्योंकि वे पैगंबर के युग के निकट थे।
- बाद के लेखकों की कोशिश (लगभग 1000 साल बाद) स्पष्ट रूप से समय-संगति को बनाए रखने के लिए की गई व्याख्यात्मक पुनःसंरचना प्रतीत होती है।
विज्ञान बनाम फिक़्ह: निष्कर्ष
वर्तमान चिकित्सा विज्ञान के अनुसार मानव गर्भावस्था अधिकतम 9–10 माह तक ही संभव है। 2–4 वर्षों तक गर्भावस्था जीवविज्ञान के आधार पर असंभव है। ऐसे में, फिक़्ह में लंबे गर्भकाल की धारणा किसी वैज्ञानिक आधार पर नहीं बल्कि ऐतिहासिक और धार्मिक सुसंगति बनाए रखने के लिए निर्मित हुई प्रतीत होती है।

निष्कर्ष: एक ऐतिहासिक सत्य और उसका आवरण
प्राचीनतम इस्लामी स्रोत — इब्न इस्हाक़, इब्न हिशाम, इब्न साद — स्पष्ट रूप से संकेत करते हैं कि पैगंबर मुहम्मद (ﷺ) का जन्म हज़रत अब्दुल्लाह की मृत्यु के 2 से 4 साल बाद हुआ।
हमज़ा का 2–4 वर्ष बड़ा होना और दोनों शादियों का एक ही दिन होना इस अनुमान की पुष्टि करते हैं।
यह अंतर सामान्य गर्भावस्था के मानकों से मेल नहीं खाता, अतः इस्लामी फिक़्ह को 2–4 साल की गर्भावधि माननी पड़ी।

इस मान्यता को शरई वैधता देने के लिए फिक़्ही नियम, तफ़सीरी कथाएँ और बाद की व्याख्याएँ प्रस्तुत की गईं — लेकिन इनमें से कोई भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उचित नहीं है।
यह विश्लेषण किसी की धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाने के उद्देश्य से नहीं, बल्कि स्रोतों के आलोक में एक ऐतिहासिक यथार्थ को समझने के लिए प्रस्तुत है।
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