नबी मुहम्मद: इस्लामी किताबों के बाहर

मुहम्मद और प्रारंभिक इस्लाम: बाहरी स्रोतों में सबसे प्राचीन साक्ष्य

1. सेबेबोस और “Mahmet” का उल्लेख

7वीं शताब्दी के आर्मेनियाई इतिहासकार सेबेबोस (Sebeos) ने अपनी रचना “History of Heraclius” (लगभग 660–670 CE) में इस्लाम और मुहम्मद का उल्लेख किया। इसे इस्लाम से बाहर किसी लेखक द्वारा दिया गया सबसे प्राचीन साक्ष्य माना जाता है।

सेबेबोस लिखते हैं:

“At this time there was an Ishmaelite called Mahmet, a merchant; he presented himself to them as though at God’s command, as a preacher, as the way of…”
(History of Heraclius, Internet Archive edition)

इस उद्धरण में कुछ महत्वपूर्ण बिंदु स्पष्ट होते हैं:

  1. मुहम्मद का नाम “Mahmet” के रूप में लिखा गया।
  2. उन्हें मुख्यतः व्यापारी (merchant) बताया गया।
  3. उन्हें “God’s command” पर उपदेश देने वाला कहा गया है, लेकिन स्पष्ट रूप से “नबी” (prophet) के रूप में नहीं।

इससे यह संकेत मिलता है कि इस्लाम के प्रारंभिक दौर में बाहर के समाज मुहम्मद को एक सामाजिक और धार्मिक नेता के रूप में देखते थे, न कि पैग़म्बर के रूप में।


2. इस्लामी परंपरा बनाम बाहरी दृष्टि

इस्लामी साहित्य—हदीस, सीरा और तफ़सीर—मुहम्मद को अद्वितीय पैग़म्बर और अंतिम दूत के रूप में प्रस्तुत करता है।

लेकिन Sebeos जैसे गैर-मुस्लिम स्रोत उन्हें व्यापारी और प्रचारक के रूप में ही दिखाते हैं।

यह अंतर कई सवाल उठाता है:

  • क्या उस समय “नबी” की अवधारणा इस्लाम से बाहर के समाजों में इतनी प्रचलित नहीं थी?
  • क्या इस्लामी परंपरा ने बाद के दौर में मुहम्मद की पहचान और जीवन को अधिक धार्मिक और चमत्कारी रूप दिया?

ये सवाल इतिहास और आलोचनात्मक अध्ययन दोनों के लिए खुला क्षेत्र हैं।


3. Sebeos में युद्ध और क्रूरता का अभाव

Sebeos मुहम्मद की व्यक्तिगत क्रूर सैन्य अभियान, युद्धों या ग़ुलाम रखने का उल्लेख नहीं करते।

  • वे इस्लाम को एक सैन्य-राजनीतिक आंदोलन के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
  • उनका लेखन मुख्यतः इस्लाम के उद्देश्य और अरबों को एकजुट करने के प्रयास पर केंद्रित है।
  • मुहम्मद की मृत्यु के बाद, Sebeos ख़लीफ़ाओं और अरबों के Byzantine साम्राज्य के खिलाफ सैन्य अभियानों का वर्णन करते हैं।

निष्कर्षतः:

  • Sebeos मुहम्मद की निजी जीवनशैली या युद्ध-रणनीतियों की जीवनी नहीं देते।
  • वह उन्हें धार्मिक-राजनीतिक नेता के रूप में दिखाते हैं।
  • ग़ुलामी, स्त्रियों या क्रूर दंड जैसी बातें केवल इस्लामी परंपराओं (हदीस, सीरा, फिक़्ह) में मिलती हैं, बाहरी गवाहों में नहीं।

4. आलोचनात्मक बिंदु: इतिहास बनाम परंपरा

यह अंतर इतिहास की समीक्षा को रोचक बनाता है:

  • इस्लामी स्रोत मुहम्मद के जीवन को अत्यधिक विस्तार से, उनके व्यक्तिगत पहलुओं और युद्ध की हिंसाओं तक दर्ज करते हैं।
  • बाहरी स्रोतों में उनका चित्रण सीमित और राजनीतिक-धार्मिक नेता के रूप में होता है।

इससे यह सवाल उठता है:

  • अगर मुहम्मद इतने बड़े धार्मिक और सैन्य व्यक्तित्व थे, तो समकालीन बाहरी स्रोतों में उनके बारे में इतने सीमित विवरण क्यों हैं?
  • क्या यह संभव है कि पैग़म्बरी पहचान बाद में इस्लामी परंपरा में विकसित हुई, जबकि बाहरी समाजों ने उन्हें केवल सामाजिक-धार्मिक नेता के रूप में ही देखा?

5. संभावित पुस्तक संशोधन और सत्ता का प्रभाव

Sebeos में मुहम्मद की स्लेवरी, बच्चियों से विवाह, और काफ़िरों की हत्या जैसी घटनाओं का कोई उल्लेख नहीं है।

यह सवाल पैदा करता है:

  • क्या बाद के ख़लीफ़ा या सत्ता में बैठे लोग ने अपने राजनीतिक या सामाजिक हितों को साधने के लिए किताबों में फेरबदल और परिवर्धन किया?
  • क्या उन्होंने धर्म के नाम पर अपने निर्णयों और नीतियों को वैध और धार्मिक रूप देने के लिए इतिहास और हदीस को अपने अनुकूल रूप में प्रस्तुत किया?

यह आलोचनात्मक दृष्टिकोण इतिहास और धर्मशास्त्र के अध्ययन में महत्वपूर्ण है।


6. निष्कर्ष की बजाय प्रश्न

Sebeos का उल्लेख हमें यह दर्शाता है कि 7वीं शताब्दी के गैर-मुस्लिम स्रोतों में मुहम्मद को किस रूप में देखा गया:

  • एक व्यापारी और प्रचारक
  • पैग़म्बर के रूप में नहीं

यह हमें गंभीर प्रश्न पूछने पर मजबूर करता है:

  • क्या इस्लामी परंपरा में मुहम्मद की धार्मिक पहचान धीरे-धीरे विकसित हुई?
  • क्या बाद के दौर में सत्ता और राजनीतिक हितों के लिए इस्लामी ग्रंथों में फेरबदल किया गया?

पिछले लेखों में हमने इस्लामी ग्रंथों में बदलाव की संभावनाओं और उनमें प्रस्तुत अल्लाह तथा रसूल के स्वरूप, गुण और स्वभाव पर विस्तार से चर्चा की थी।
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