इस्लामी कैलेंडर: हिजरी सम्वत 

तारीख़ों का गणित और भ्रम

इस्लामी कैलेंडर यानी हिजरी कैलेंडर की शुरुआत सन 638 ईस्वी में हुई। यह वह समय था जब तत्कालीन ख़लीफ़ा उमर ने इसे आधिकारिक तौर पर लागू किया। मगर इसकी गिनती की शुरुवात उस घटना से की जाती है जब पैग़म्बर मुहम्मद ने मक्का से मदीना हिजरत (प्रवास) किया यानि 622 ईस्वी।

अर्थात यह कैलेंडर मुहम्मद साहब की हिजरत (प्रवास) के 16 साल बाद बना, पर गड़ना हिजरत से ही शुरू की गई।

लूनर कैलेंडर की खासियत

इस्लामी कैलेंडर चाँद (लूनर) पर आधारित है, जबकि आज दुनिया का ज़्यादातर हिस्सा सूरज (सोलर) पर आधारित कैलेंडर (ग्रेगोरियन) इस्तेमाल करता है।

  • एक सौर वर्ष (Solar Year) = लगभग 365 दिन
  • एक चाँद का साल (Lunar Year) = लगभग 354 दिन

यानि हर साल इस्लामी कैलेंडर 10–11 दिन छोटा पड़ जाता है।

नतीजा

  • 3 साल में यह लगभग 1 महीना पीछे खिसक जाता है
  • यही कारण है कि 18 साल में रमज़ान कभी ठंडी सर्दियों में आता है, तो अगले 18 वर्ष बाद तेज़ गर्मियों में। क्यों के 18 साल में 6 महीने का अंतर आ जाता है।
  • 33 साल में तो यह पूरे 12 महीने घूम कर वही मौसम वापस आ जाता है।

मुहम्मद साहब का जन्म, नबूवत, हिजरत और हिसाब का फर्क

अगर हम हिजरत के समय (622 ई.) से कैलेंडर शुरू होने (638 ई ) तक का फर्क इस्लामी कैलेंडर से निकालें, तो लगभग 16 साल का अंतर दिखाई देता है।

  • वजह यह है कि हर साल 10–11 दिन कम होते-होते यह फर्क धीरे-धीरे 6 महीने से ज़्यादा तक पहुँच जाता है।
  • इस से इस्लामी तारीखों का बिल्कुल सही और सटीक होना संदेहात्मक हो जाता है।
  • अगर नबूवत (610 ई) से कैलेंडर शुरू होने का समय देखें तो 28 वर्ष का अंतर है यानि लगभग 10-11 महीने गायब हैं तारीख के पन्नो से।
  • अगर हम जन्म (570 ई) से देखें तो पाएंगे कि कैलेंडर शुरू होने के बीच 68 साल का अंतर है यानि लगभग दो साल गायब हो जाते हैं इतिहास की तारीखों से। यह ऐसे है मानो कैलेंडर की गिनती से “2 साल गायब” हो गए हों।

नतीजा क्यों उलझन पैदा करता है?

  • जब इस्लामी कैलेंडर को ग्रेगोरियन कैलेंडर से मिलाया जाता है तो हर साल के 10 दिन घटने के कारण पुरानी घटनाओं की सटीक तारीख़ तय करना मुश्किल हो जाता है।
  • इसी वजह से आज भी इस्लामी इतिहास की तारीख़ों में मतभेद दिखते हैं — कोई घटना किसी किताब में एक साल पहले लिखी है, तो कहीं उसी घटना को एक साल बाद बताया गया है।

आसान भाषा में समझें

  • इस्लामी कैलेंडर हर साल 10 दिन छोटा है।
  • 3 साल में 1 महीना और 33 साल में पूरा साल पीछे खिसक जाता है।
  • इसलिए रमज़ान और ईद कभी ठंड में होती है, कभी गर्मी में।
  • नबूवत से कैलेंडर शुरू होने तक का हिसाब लगाएँ तो लगभग 28 साल का फर्क बनता है। यानी 10-11 महीने गायब। या तारीखें10 महीने आगे पीछे।
  • मुहम्मद की पैदाइश के हिसाब से देखें तो करीब 2 साल गायब से लगते हैं

यानि सीधी बात यह है कि इस्लामी कैलेंडर घटनाओं को याद रखने के लिए तो चलता है, लेकिन तारीख़ों का हिसाब लगाने में यह हमेशा उलझन पैदा करता है।

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