हजरत आयशा की उम्र: क्या वे निकाह के समय बालिग़ थीं? – हदीसों का विश्लेषण

परिचय

हज़रत आयशा के निकाह की उम्र को लेकर इस्लामी इतिहास में विभिन्न दृष्टिकोण सामने आते हैं। कुछ का दावा है कि वे निकाह के समय बालिग़ थीं, क्योंकि उन्हें हैज़ (माहवारी) आ चुकी थी। हालाँकि, इस दावे का समर्थन किताब-उल-सित्ताह (छह प्रमुख हदीस संकलन) में कहीं नहीं मिलता।

इस लेख में हम सही हदीसों और इस्लामी विद्वानों की व्याख्या की रोशनी में इस दावे की सच्चाई की पड़ताल करेंगे और तथ्यात्मक निष्कर्ष निकालेंगे।


हजरत आयशा की उम्र को लेकर विवाद

इतिहास और सामाजिक संदर्भ

जून 2022 में भारत में धार्मिक दंगे, आगजनी और पथराव हुए। यह विवाद तब शुरू हुआ जब बीजेपी प्रवक्ता नूपुर शर्मा ने टीवी डिबेट में हज़रत आयशा और पैगंबर मोहम्मद (ﷺ) की शादी की उम्र पर टिप्पणी की।

यह बहस पहले SDPI नेता तस्लीम रहमानी द्वारा भगवान शिव पर आपत्तिजनक टिप्पणी के बाद शुरू हुई थी। नूपुर शर्मा ने इस्लामी ग्रंथों के संदर्भ में जवाब दिया, जिसे पैगंबर (ﷺ) की तौहीन माना गया और हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए।

सत्य बनाम अपमान
किसी भी धर्मगुरु का अपमान नहीं होना चाहिए—चाहे वह भगवान शिव हों या पैगंबर मोहम्मद (ﷺ)। लेकिन सत्य और अपमान में अंतर होता है। किसी धार्मिक तथ्य को पहले सत्यापित करना चाहिए, न कि हिंसा का सहारा लेना।


इस्लामी प्रमाण: हजरत आयशा की उम्र

इस्लामी ग्रंथों के अनुसार:

  • निकाह (शादी): 6 वर्ष की आयु में
  • विवाह संपन्न (रुखसती): 9 वर्ष की आयु में
  • पैगंबर (ﷺ) की उम्र: निकाह के समय 50 वर्ष, रुखसती के समय 53 वर्ष

संबंधित हदीस प्रमाण

  • सहीह अल-बुखारी: 5133, 5134, 5158, 6130
  • सुनन इब्न माजा: 1877
  • सुनन अबू दाऊद: 4933, 2121
  • फतहुल बारी, खंड 13, पृष्ठ 143
Bukhari 5133
Scan from sunna.com

सहीह अल-बुखारी 5133:

“पैगंबर (ﷺ) ने मुझसे निकाह किया जब मैं 6 वर्ष की थी और जब मैं 9 वर्ष की हुई, तब विवाह संपन्न (इस्लाम में निकाह संपन्न / कंज्यूम होना मतलब हमबिस्तरी होता है) हुआ।”

सहीह अल-बुखारी 6130:

“शादी के बाद भी मैं इतनी छोटी थी कि गुड़ियों से खेलती थी।”

निष्कर्ष: हज़रत आयशा का निकाह 6 वर्ष की उम्र में हुआ, पैगंबर (ﷺ) 50 वर्ष के थे। यही कारण है कि इस विषय पर इस्लामी विद्वान खुलकर चर्चा नहीं करते।

क्या आयशा को पता था कि उसकी शादी हो रही है?

सही बुखारी 3894
हदीस में हज़रत आयशा (رضي الله عنها) की शादी के बारे में वर्णन किया गया है। इस हदीस के अनुसार:

“नबी ﷺ ने मुझे छह साल की उम्र में सगाई की थी। हम मदीना आए और बानी हारिस बिन ख़ज़राज़ के घर में ठहरे। फिर मुझे बुखार हो गया और मेरे बाल झड़ने लगे। बाद में मेरे बाल फिर से बढ़े और एक दिन मेरी माँ उम्म रुमान मुझे खेलने से बुलाकर घर के दरवाजे पर खड़ा कर दिया। फिर उन्होंने मुझे अंदर ले जाकर मुझे सजाया और नबी ﷺ ने मुझे सुबह के समय उनके पास भेज दिया। उस समय मेरी उम्र नौ साल थी।”

Sahi Bukhari 3894
Scan from sunna.com

इस हदीस से पता चलता है कि हज़रत आयशा उस समय इतनी छोटी थीं कि उन्हें अपनी शादी का पूरा मतलब या घटनाओं का एहसास नहीं था। साथ ही यह भी दर्शाता है कि उस समय लड़की की व्यक्तिगत सहमति की कोई औपचारिक आवश्यकता नहीं मानी जाती थी।

सही बुखारी 5137
इस हदीस में कहा गया है कि कुंवारी लड़की की चुप्पी उसकी अनुमति के बराबर होती है। यानी अगर लड़की विरोध नहीं करती, तो उसका हां कहना आवश्यक नहीं है; उसकी मौन स्वीकृति ही पर्याप्त है।

Sahih Bukhari 5137
Scan from sunna.com

माहवारी (हैज़) का दावा

कुछ विद्वान यह दावा करते हैं कि निकाह के समय हज़रत आयशा को माहवारी आ चुकी थी
तथ्य: कुतुब अल-सित्ताह में इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता।

अगर किसी के पास प्रमाण है, तो वह साझा किया जा सकता है।


हदीसों की पड़ताल: हज़रत आयशा की स्थिति

1. गुड़ियों से खेलने की हदीस (सहीह बुखारी 6130)

हज़रत आयशा खुद बयान करती हैं कि वह पैग़ंबर मोहम्मद (ﷺ) की मौजूदगी में अपनी गुड़िया से खेला करती थीं और उनकी सहेलियाँ भी उनके साथ खेलती थीं। जब भी पैग़ंबर कमरे में आते, तो उनकी सहेलियाँ दरवाजे के पीछे छिप जातीं, लेकिन मोहम्मद साहब उन्हें बुलाते और उनके साथ खेलते। इस्लाम में गुड़ियों से खेलना हराम है मगर आयशा बहुत छोटी थीं इस लिए उनको इसकी इजाजत थी। 

इमाम इब्न हजर अस्कलानी (फतहुल बारी, वॉल्यूम 13, पृष्ठ 143) लिखते हैं कि इस्लाम में गुड़ियों या इंसानी शक्ल वाले खिलौनों से खेलना हराम माना जाता है, लेकिन हज़रत आयशा को इसकी अनुमति दी गई क्योंकि वे बहुत छोटी उम्र की थीं।

Bukhari 6130
Scan from sunna.com

यह गतिविधि केवल बहुत छोटी उम्र की होने का प्रमाण है।

प्रश्न: यदि आयशा बालिग़ होतीं, क्या उन्हें गुड़ियों से खेलने की अनुमति होती?
उत्तर: बालिग़ लड़कियों को गुड़ियों से खेलने की अनुमति नहीं थी। इसका अर्थ है कि वे नाबालिग थीं और माहवारी नहीं आई थी।


2. माहवारी और नमाज़ से जुड़े हदीस

इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार, यदि किसी महिला को माहवारी आ चुकी हो और वह पुरुष के सामने हो, तो पुरुष की नमाज़ प्रभावित हो सकती है।

  • सुनान इब्न माजा 950, सही मुस्लिम 511: गधा, कुत्ता या औरत के सामने आने पर नमाज़ टूट जाती है।
Sahih Bukhari 511
Scan from sunna.com

हज़रत आयशा की प्रतिक्रिया:

“तुमने औरतों की तुलना कुत्ते और गधे से कर दी? अल्लाह की कसम, मैंने पैगंबर को नमाज़ पढ़ते हुए देखा है, जब मैं उनके और क़िब्ला के बीच में लेटी होती थी।” (सही बुखारी 514)

आयशा की उम्र और नाबालिग़ होने का प्रमाण-

सहीह बुख़ारी (हदीस 513, 511):

हज़रत आयशा कहती हैं:
“मैं अल्लाह के रसूल ﷺ के सामने सोई रहती थी और मेरे पैर क़िब्ला की ओर होते थे। जब वह सज्दा करते तो मुझे (पैर हटाने के लिए) इशारा करते, मैं पैर समेट लेती, और जब खड़े होते तो मैं फिर फैला देती।”

Sahih Bukhari 513
Scan from sunna.com

निष्कर्ष:
यदि आयशा उस समय बालिग़ होतीं और उन्हें माहवारी (हैज़) आ चुका होता, तो पैग़ंबर ﷺ उनके सामने नमाज़ अदा नहीं कर सकते थे।

क्योंकि:

सुनन इब्न माजा (हदीस 949):

“يَقْطَعُ الصَّلَاةَ الْمَرْأَةُ الْحَائِضُ، وَالْكَلْبُ، وَالْحِمَارُ”.

Sunan Ibn Majah 949
Scan from sunna.com


हिंदी अनुवाद:

औरत (जो हैज़ वाली हो), कुत्ता और गधा – ये नमाज़ को तोड़ देते हैं।”
मतलब वह औरत, जिसे माहवारी आ चुकी हो, सामने से गुज़र जाए, तो नमाज़ टूट जाती है। अगर आयशा (रज़ि.) को हैज़ (मासिक धर्म) आ चुका होता, तो वे “मरأة حائض” की श्रेणी में आतीं। ऐसी स्थिति में पैगंबर ﷺ उनके सामने नमाज़ नहीं पढ़ सकते थे (क्योंकि हदीस के अनुसार उनकी मौजूदगी नमाज़ को तोड़ देती)।

इसका स्पष्ट अर्थ है कि यदि आयशा को हैज़ आ चुका होता, तो पैग़ंबर ﷺ उनके सामने सज्दा नहीं कर सकते थे। लेकिन बुख़ारी की हदीस साफ़ दिखाती है कि वे उनके सामने नमाज़ पढ़ते थे।

अतः यह हदीसें सिद्ध करती हैं कि उस समय आयशा को माहवारी (हैज़) नहीं आई थी, अर्थात वे नाबालिग़ थीं।

हदीस स्पष्ट करती हैं कि वे नाबालिग थीं।


इस्लामी विद्वानों की व्याख्या

इस हदीस में दिखने वाले विरोधाभास को दूर करने के लिए इस्लामी विद्वानों ने विभिन्न तर्क दिए हैं:

  1. इमाम अबू हनीफा (80-150 हिजरी): स्थिर अवस्था में होने पर नमाज़ नहीं टूटती।
  2. इमाम मालिक (93-179 हिजरी): सक्रिय रूप से सामने आने पर ही नमाज़ टूटती है।
  3. इमाम शाफ़ई (150-204 हिजरी): महिला केवल मौजूद हो और हरकत न करे, तो नमाज़ नहीं टूटेगी।
  4. इमाम इब्न हजर अस्कलानी (773-852 हिजरी): हज़रत आयशा के पैरों की हरकत केवल स्थानीय थी, स्थानांतरण नहीं।

महत्वपूर्ण: किसी विद्वान ने यह दावा नहीं किया कि हज़रत आयशा को निकाह के समय माहवारी आ चुकी थी।


निष्कर्ष

  1. हदीसों में कहीं भी यह प्रमाण नहीं मिलता कि आयशा बालिग़ थीं।
  2. माहवारी होने पर पैगंबर की नमाज़ प्रभावित होती, लेकिन ऐसा हदीसों में नहीं दिखता।
  3. गुड़ियों से खेलने की हदीस (सहीह बुखारी 6130) नाबालिग होने का प्रमाण है।
  4. विद्वानों की व्याख्या हदीसों के अनुरूप है, लेकिन किसी ने माहवारी के दावे का समर्थन नहीं किया।

निष्कर्ष: हदीसों और विद्वानों की व्याख्या के आधार पर, हज़रत आयशा निकाह के समय बालिग़ नहीं थीं।

अगर कोई विपरीत प्रमाण प्रस्तुत कर सके, तो चर्चा संभव है।


समस्या: आम मुसलमानों में जानकारी का अभाव

कई मुसलमान सीधे मौलवियों या ऑनलाइन लेखों पर भरोसा करते हैं।
इसके कारण, गलत जानकारी फैलती है और हिंसा का मार्ग अपनाया जाता है।

नूपुर शर्मा के मामले में भी यही हुआ। कुछ उलेमा जानते थे कि बयान सही था, फिर भी भावनात्मक प्रतिक्रिया उकसाई गई।


सत्य की खोज स्वयं करें

  • धार्मिक ग्रंथों की जानकारी पर आधारित निर्णय लें।
  • किसी मौलाना या प्रचारक की भावनात्मक उकसावे पर आंख मूंदकर भरोसा न करें।
  • शिक्षित समाज ही गलत प्रचार और बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं को रोक सकता है।

अंतिम विचार:
“सत्य को जांचें, परखें और फिर विश्वास करें। धार्मिक नेताओं की बातों पर आंख मूंदकर भरोसा करना घातक हो सकता है।”

📢 यह लेख आपको उपयोगी लगा?
🙏 हमारे प्रयास को support करने के लिए यहाँ क्लिक करें

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
Scroll to Top