
मुगलों ने मंदिर तोड़े, तो इतने मंदिर कैसे बचगए?
इस्लाम का ढोंग
मुस्लिम उलेमा और भारतीय मुसलमान चीख-चीखकर कहते हैं: “अगर मुगलों ने मंदिर तोड़े होते, तो भारत में इतने मंदिर कैसे बचे?” ये शांति का मुखौटा पहनाकर इस्लाम को पाक-साफ दिखाने की चाल है। मगर क्या ये सच है, या बस एक जलता हुआ झूठ? आइए, औरंगज़ेब और मुगलों के मंदिर तोड़ने के काले सच को इतिहास की आग में नंगा करें और इस ढोंग का पर्दाफाश करें।
औरंगज़ेब और मुगलों ने मंदिर क्यों तोड़े? इस्लाम का काला सच
हमें बताया जाता है कि मुगल “शांति प्रिय” थे, मगर इतिहास चीखता है—औरंगज़ेब और उसके पुरखों ने भारत के मंदिरों को क्यों निशाना बनाया? विशाल भारत, हज़ारों स्क्वायर किलोमीटर खाली ज़मीन, फिर भी मस्जिदें ठीक वहीँ क्यों बनाईं जहाँ मंदिर थे? राम जन्मभूमि, काशी विश्वनाथ, कृष्ण जन्मभूमि, सोमनाथ—जिसे 17 बार लूटा और तोड़ा गया (रेफरेंस: Al-Baladhuri, Futuh al-Buldan)—ये संयोग नहीं, सुनियोजित साजिश थी। वजह? मोहम्मद की सुन्नत, जिसने कहा: “मुझे बुत तोड़ने के लिए भेजा गया है।” (सही बुखारी, हदीस 2478)। इस्लाम का मकसद था—काफिरों और मुशरिकों को खत्म कर, “ला इलाहा इल्लल्लाह” (कोई खुदा नहीं सिवाय अल्लाह के) को थोपना और हर मज़हब की इबादतगाह को रौंदना।
मंदिर वहीं क्यों तोड़े गए?
औरंगज़ेब का फरमान (9 अप्रैल 1669) साफ कहता है: “मंदिरों को ढहाओ, हिंदुओं को इस्लाम कबूल करने पर मजबूर करो।” (रेफरेंस: Maasir-i-Alamgiri, Saqi Mustad Khan, पृ. 81)। राम मंदिर को बाबर ने 1528 में रौंदा (रेफरेंस: Baburnama, अनुवाद Beveridge, पृ. 575)। सोमनाथ को महमूद गज़नवी ने 1024 में लूटा, 30,000 हिंदुओं का कत्ल किया (रेफरेंस: Tarikh-i-Firishta, Vol. 1)। खाली ज़मीन छोड़कर मंदिरों पर मस्जिदें बनाना “शांति” नहीं, इस्लाम की जीत का ऐलान था। कुरान कहता है: “उनके पूजा स्थलों को तोड़ दो।” (सूरह अल-तौबा 9:5)। ये सुन्नत थी—हर गैर-इस्लामी निशान को मिटाना।
सारे मंदिर क्यों नहीं तोड़े?
सवाल उठता है—अगर मकसद बुत तोड़ना था, तो सारे मंदिर क्यों बचे? जवाब कुरान में नहीं, मुगलों की चाल में है। गुलाम सैनिक, मजदूर, और सेना कहाँ से लाते? जज़िया की मोटी कमाई कैसे होती? मोहम्मद कोई व्यापारी नहीं था। सीरत-उन-नबी बताती है—उसकी कमाई का ज़रिया “माल-ए-गनीमत” (युद्ध की लूट) था। (रेफरेंस: Ibn Hisham, Sirat Rasul Allah, पृ. 438)। उसने तिजारती कबीलों को लूटा, मदीना में यहूदियों पर हमले किए। मगर लूट कोई स्थायी आमदनी नहीं थी। इसलिए जज़िया आया—इस्लाम का “गुंडा टैक्स।” हिदाया (मुस्लिम कानून की किताब) कहती है: यहूदियों से 50% तक कमाई छीनी गई। (रेफरेंस: Al-Hidaya, Vol. 2)। औरंगज़ेब ने 1679 में जज़िया फिर लागू किया—हिंदुओं की मेहनत का 50% लूटो, बैठे-बिठाए मज़े करो। सबको कन्वर्ट कर दिया, तो ये टैक्स कहाँ से आता? इसीलिए सारे मंदिर नहीं तोड़े।
झूठी कहानियाँ और सच:
कहते हैं काशी विश्वनाथ इसलिए तोड़ा गया कि “एक रानी को पंडितों ने परेशान किया।” ये झूठ है, मुसलमानों को “शांति प्रिय” दिखाने की साजिश। सच ये—औरंगज़ेब का फरमान कहता है: “काशी के मंदिर को ढहाओ, मस्जिद बनाओ।” (रेफरेंस: Maasir-i-Alamgiri, पृ. 107)। इस्लाम का जन्म ही बाकी मज़हबों को कुचलने के लिए हुआ। कुरान कहता है: “काफिरों को मारो, जहाँ पाओ।” (सूरह अल-बकराह 2:191)। इसे “उस ज़माने की बात” कहकर नहीं टाला जा सकता—कुरान कयामत तक के लिए है (सूरह अल-अहज़ाब 33:40)।
अतिरिक्त सच:
- केरल का मामी मंदिर: परशुराम मंदिर को मलिक इब्न दिनार ने 7वीं सदी में मस्जिद में बदला। (रेफरेंस: Zainuddin Makhdoom, Tuhfat-ul-Mujahideen)।
- अजमेर का जैन मंदिर: कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसे ढहाकर “अढ़ाई दिन का झोपड़ा” बनाया। (रेफरेंस: Archaeological Survey of India Reports, Vol. 4)।
- 70,000 मंदिरों की तबाही: इतिहासकार सिता राम गोयल का दावा—मुगलों ने 70,000 से ज्यादा मंदिर तोड़े। (रेफरेंस: Hindu Temples: What Happened to Them, Vol. 1)।
निष्कर्ष—आग का गोला:
मंदिर तोड़ना मुगलों की “शौकिया हरकत” नहीं, इस्लाम की सुन्नत थी। खाली ज़मीन छोड़कर मंदिरों को रौंदना, मस्जिदें बनाना—ये हिंदुओं को नीचा दिखाने और इस्लाम थोपने का खेल था। जज़िया और गुलामों की ज़रूरत ने सारे मंदिर तोड़ने से रोका। ये “सहिष्णुता” नहीं, लालच था। कुरान और हदीस का सच यही है—हर मज़हब को मिटाकर “अल्लाह का राज” कायम करना। इस ढोंग को आग दो, सवालों की धार से चीर दो—सच सामने है, अब झूठ की राख बचेगी।
