
भूमिका
जैसा कि हमने पिछले लेखों में देखा है, कुरआन और हदीसों में बदलाव की संभावना और स्रोतों के आपसी संबंधों पर चर्चा की गई है। हमने विभिन्न तफ़सीरों और हदीस-ग्रंथों की तुलना कर एक सामान्य तस्वीर प्रस्तुत करने का प्रयास किया। इस लेख का उद्देश्य केवल तथ्यों और स्रोत-उद्धरणों को सामने रखना है — न कि किसी की भावनाएँ आहत करना।
नोट: अगर आप की भावनाएं जल्दी आहत हो जाती हैं, तो पहले [भावना आहत] पढ़ें।
कृपया लेख पढ़ने के बाद यदि किसी बात से आपकी भावनाएँ प्रभावित हों, तो व्यक्तिगत नाराज़गी के बजाय संदर्भों (कुरआन, तफ़सीर, हदीस-किताबें) को अवश्य क्रॉस-वेरिफ़ाई करें — जैसे quran.com, मान्य तफ़सीरें और प्रमाणित हदीस-संग्रह। लेख में दी गई बातें ग्रंथों से यथावत् ली गई हैं; यदि आप इनमें से किसी बिंदु से असहमत हैं, तो कृपया अपने प्रमाण साथ रखें और तर्कसंगत बहस करें।
क्या कहते हैं विद्वान — दो प्रमुख दृष्टिकोण
सबसे पहले यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि इस विषय पर इस्लामी विद्वानों की व्याख्याएँ एक समान नहीं हैं:

“बिला क़ैफ़” (Bila Kayf) दृष्टिकोण — अपरिभाषित रहना
कुछ परम्परागत स्कूल (जैसे Ahl al-Hadith) शारीरिक संबोधनों को शाब्दिक रूप में स्वीकार करते हैं, परन्तु “कैसे” — यानी उनकी सटीक प्रकृति — पर प्रश्न करने से बचते हैं। इसे Bila Kayf कहा जाता है: शब्दों को स्वीकार किया जाता है, लेकिन उनकी व्याख्या नहीं की जाती।
इन्कॉर्पोरेअलिस्ट / अदृश्य ईश्वर दृष्टिकोण
क़लामी (Mutazili, Ash‘ari, Maturidi) और कुछ शिया परंपराओं में अल्लाह को पूर्णतः अदृश्य और शरीरिक-रूपी से अलग माना जाता है। इनके अनुसार जहाँ भाषा प्रतीकात्मक है, वहाँ उसे प्रतीकात्मक ही लेना चाहिए; न कि शाब्दिक।
हम इन दोनों दृष्टिकोणों को स्वीकार करते हुए सीधे ग्रंथों में प्रयुक्त शब्दों और उनसे निकलने वाले वैचारिक निहितार्थों की समीक्षा करेंगे।
जिस्म वाला अल्लाह — कुरआन और हदीसों की छवि
लेख के आगे दिए गए हिस्सों में वे आयतें और हदीस उद्धृत हैं जो शारीरिक विशेषताओं का उल्लेख करती हैं। यह लेख उन्हीं तथ्यों को सामने रखता है — और यह दर्शाता है कि अल्लाह का कथित “निराकार” स्वरूप वैसा नहीं है जैसा अक्सर समझा जाता है।
1. अल्लाह के दोनों हाथ
Surah Sad 38:75
“मैंने उसे अपने दोनों हाथों से बनाया।”
(بِيَدَيَّ – Bi-yadayya) – द्विवचन है, अर्थात् “दो हाथ।”

Surah Al-Ma’idah 5:64
“यहूदियों ने कहा: अल्लाह का हाथ बंधा हुआ है… बल्कि उसके दोनों हाथ खुले हैं।”
Surah Az-Zumar 39:67
“…क़यामत के दिन सारी धरती उसकी मुट्ठी में होगी।”
Sahih Muslim 2787
“अल्लाह के एक हाथ में ज़मीन और एक में आसमान होगा।”
निहितार्थ: यदि इन वाक्यों को शाब्दिक रूप में लिया जाए तो “दो हाथ” (Bi-yadayya) — द्विवचन का प्रयोग — सीधी शारीरिकता का संकेत देता है। दूसरी ओर, व्याख्यावादी परंपराएँ इन्हें रूपक/प्रतीक के रूप में समझती हैं (जैसे शक्ति, सत्ता या आत्मीयता का प्रतीक)।

लेकिन प्रश्न यह उठता है कि यदि “हाथ” केवल प्रतीक होते, तो “दोनों हाथों से बनाया” कहने की आवश्यकता क्यों पड़ती? केवल “हाथों से बनाया” कहना पर्याप्त होता। “दोनों हाथ” कहना संख्या-विशेष (numeric) पर बल देता है — जो प्रतीकात्मकता से अधिक शारीरिकता की ओर झुकाव दिखाता है।
2. दोनों हाथ एक ही ओर?
Sunan an-Nasa’i 5379, Mishkat al-Masabih 3690
“किल्ता यदै रब्बी यमीनून” (كِلْتَا يَدَيْ رَبِّي يَمِينٌ) — “अल्लाह के दोनों हाथ दाहिने हैं।”
निहितार्थ: शाब्दिक रूप में पढ़ने पर यह कथन स्पष्ट विरोधाभास उत्पन्न करता है। “दोनों हाथ दाहिने” कहना जैविक दृष्टि से असंगत प्रतीत होता है। व्याख्यावादी इसे प्रतीकात्मक मानते हुए “यमीन” (Arabic: يمين) को शक्ति, वरदान या सद्गुण का सूचक बताते हैं। परंतु शाब्दिक पाठ में यह विसंगति गंभीर प्रश्न खड़ा करती है — क्या वास्तव में दोनों हाथ एक ही ओर हैं?
3. क़यामत में पिंडली (साक़) दिखाना
Surah Al-Qalam 68:42; Sahih Bukhari 7439
“जिस दिन अल्लाह अपनी पिंडली (سَاق – saq) खोलेगा…”

निहितार्थ: Saq शब्द अरबी में शारीरिक अंग — पिंडली/पैर का निचला हिस्सा — सूचित करता है। यदि इसे शाब्दिक माना जाए तो यह स्पष्ट शारीरिकता की ओर इशारा करता है। पिंडली (shin) कोई अमूर्त प्रतीक नहीं है; यह एक सीधा जैविक अंग है। एक निराकार सत्ता “पिंडली” नहीं दिखा सकती।
4. उंगलियाँ और अंगुलियाँ
Sahih Muslim 2655
“हर दिल अल्लाह की दो उंगलियों के बीच है…”
Sahih Bukhari 7513, 4811
“अल्लाह एक उंगली पर आसमान, एक पर ज़मीन, एक पर पानी और मिट्टी, और एक पर सारी मखलूक रखेगा।”

हदीसों में इस प्रकार की वर्णनाएँ मिलती हैं, जहाँ उंगलियों पर सम्पूर्ण सृष्टि को रखने की बात कही गई है।
यहाँ चार उंगलियों का उल्लेख हुआ है — ठीक मनुष्य की भाँति। यदि यह केवल प्रतीकात्मक होता, तो संख्या (चार) बताने की आवश्यकता नहीं थी; केवल “उंगली पर रखना” पर्याप्त था। यह विवरण “चार उंगलियाँ + एक अंगूठा” जैसी मानव-जैसी संरचना का संकेत देता है।
निहितार्थ: यहाँ भी संख्यावाचक भाषा (चार उंगलियाँ आदि) मानव-सदृश शारीरिक संरचना की छवि प्रस्तुत करती है — बशर्ते इन्हें शाब्दिक रूप में पढ़ा जाए।
5. अल्लाह की आँखें – “काना नहीं” वाली स्वीकारोक्ति

- क़ुरआन
- सूरह ताहा 20:39 – “…मेरी निगाहों के सामने पाला गया।”
- सूरह अल-क़मर 54:14 – “…हमारी आंखों के सामने।”
- हदीस
- सहीह बुख़ारी 7407 – “दज्जाल की एक आंख है, लेकिन तुम्हारा रब काना नहीं है।”
(यहां पैग़म्बर ने अपनी आंख की तरफ इशारा भी किया।)
- सहीह बुख़ारी 7407 – “दज्जाल की एक आंख है, लेकिन तुम्हारा रब काना नहीं है।”

निहितार्थ:
यहाँ “काना नहीं” कहना अपने आप में स्वीकार करता है कि अल्लाह की आंखें हैं – भले ही इंसान जैसी न हों। अगर “आंख” महज़ प्रतीक होता, तो “एक-आंखा नहीं है” जैसी तुलना का कोई अर्थ नहीं निकलता। कम-से-कम इतना तो साफ़ है कि ग्रंथों में अल्लाह के पास देखने का कोई ठोस, अंग-सदृश गुण बताया गया है, न कि केवल अमूर्त दृष्टि।
6. चेहरा और मानव सूरत
- क़ुरआन
- सूरह अर-रहमान 55:27 – “तेरे रब का चेहरा बाक़ी रहेगा…”
- हदीस
- सहीह मुस्लिम 2612a-d – “आदम को अपनी सूरत पर बनाया।”
- “लोगों की शक्ल बिगाड़ो मत, क्योंकि अल्लाह ने उन्हें अपनी सूरत पर बनाया है।”

निहितार्थ:
यह वाक्यांश गहरी बहस पैदा करता है। अगर “सूरत” का अर्थ केवल “गुण” या “स्वभाव” है, तो “चेहरा बाक़ी रहेगा” जैसी आयत को कैसे समझा जाए? और अगर सूरत सचमुच किसी आकृति/रूप का संकेत देती है, तो क्या आदम की शक्ल अल्लाह की शक्ल से मेल खाती थी? यहाँ मानव-सदृशता का प्रश्न टलता नहीं है, बल्कि और सीधा हो जाता है।
7. सिंहासन (अर्श) पर विराजमान
- क़ुरआन
- सूरह ताहा 20:5 – “रहमान अर्श पर विराजमान है।”
- सूरह अल-हाक़्क़ा 69:17 – “उस दिन आठ फरिश्ते तुम्हारे रब के अर्श को उठाएंगे।”

निहितार्थ:
“इस्तवा अलल अर्श” – अधिकतर तफ़सीरों में “ठहरना/बैठना” के रूप में समझा गया है। अगर अर्श एक ठोस सिंहासन है जिसे फ़रिश्ते उठा सकते हैं, तो इसका अर्थ है कि अर्श का वज़न है। और अगर अल्लाह उसी पर विराजमान है, तो क्या फ़रिश्ते उसके वज़न समेत उसे उठा रहे हैं?
यह सवाल सीधे-सीधे अल्लाह को स्थानिक और पदार्थ-निर्भर सत्ता की तरह चित्रित करता है। एक निराकार और सर्वव्यापी सत्ता के लिए “सिंहासन पर बैठना और उसका उठाया जाना” विचारणीय विरोधाभास है।
8. क़दम (पैर) — नरक पर प्रभाव
- हदीस
- सहीह बुख़ारी 4849, सहीह मुस्लिम 2846B – “जब तक अल्लाह अपना क़दम (foot) नरक में नहीं रखता, वह नहीं भरती। और तब नरक कहती है: ‘अब बस!’”

निहितार्थ:
यहाँ “क़दम” का प्रयोग किसी भौतिक क्रिया जैसा प्रतीत होता है। नरक का “भरना” और फिर “पैर डालने से रुक जाना” — यह एक ठोस हस्तक्षेप का चित्र खींचता है। अगर इसे प्रतीक मानें तो प्रश्न उठता है कि पैर डालने जैसी छवि क्यों? केवल “आदेश देकर” भी नरक को भरा जा सकता था। मगर “क़दम” रखने का वर्णन स्पष्ट रूप से शारीरिक उपस्थिति का आभास देता है।
9. आवाज़, बोली और संवाद
- क़ुरआन
- सूरह अन-निसा 4:164 – “अल्लाह ने मूसा से सीधे बात की।”
- हदीस
- सहीह मुस्लिम 2968 – “क़यामत में अल्लाह हर व्यक्ति से बिना दुभाषिये के बात करेगा।”
- सहीह मुस्लिम 1890 – “अल्लाह हँसता है ”
निहितार्थ:
बात करना, हँसना, संवाद करना — ये सब संवेदी क्रियाएँ हैं, जिनके लिए स्वर, उच्चारण, आवाज़ की ज़रूरत होती है। एक निराकार सत्ता यह सब कैसे करेगी?
पारंपरिक तफ़सीरकार अक्सर इसे “मानव-समझ के लिए उदाहरण” कहकर टालते हैं। परंतु सीधी भाषा — “अल्लाह ने मूसा से सीधे बात की” या “अल्लाह हँसता है” — यह केवल रूपक भर नहीं लगती, बल्कि शारीरिकता और भाव-व्यवहार का संकेत देती है।
10. उतरना-चढ़ना
- हदीस
- सहीह बुख़ारी 1145 – “हर रात अल्लाह आसमान की निचली परत में उतरता है…”

निहितार्थ:
“उतरना” तभी संभव है जब कोई स्थान, दिशा और दूरी हो। अगर अल्लाह सर्वव्यापी और निराकार है, तो उसे ऊपर से नीचे आने की ज़रूरत क्यों?
यह विवरण अल्लाह को एक ऐसी सत्ता की तरह दर्शाता है जो स्थानिक (spatially bound) है। अगर वह हर जगह है, तो उतरने-चढ़ने का क्या अर्थ रह जाता है?
11. नुत्फ़ा / पुनरुत्थान संबंधी
- हदीस
- सहीह बुख़ारी 4935 – “क़यामत के दिन अल्लाह आकाश से पानी बरसाएगा, और लोग सब्ज़ी की तरह उगेंगे।”

- तफ़सीर व परम्परागत व्याख्या
- तफ़सीर इब्न कसीर (सूरह 79:46) – “अल्लाह बारिश भेजेगा जो स्पर्म (नुत्फ़ा) जैसी होगी, और मृतक सब्ज़ियों की तरह उगेंगे।”
- फ़त्ह अल-बारी (इब्न हजर अल-असक़लानी) – “यह पानी नुत्फ़ा जैसा होगा, जिसे अल्लाह एक थैली में सदियों तक सुरक्षित रखेगा और उसी से अंतिम पुनर्जीवन होगा।”
- इमाम नववी व हम्बली विद्वान – “यह पानी अल्लाह के पास एक थैली में रखा गया है।”

- मुश्तरक़ अल-सहिहैन – “अर्श के नीचे एक थैली है जिसमें पुरुषों के मणि (स्पर्म) जैसा पानी है, जिससे क़यामत में जीवन दिया जाएगा।”
निहितार्थ:
एक निराकार सत्ता के पास “स्पर्म जैसी वर्षा, और थैली में संग्रहित पानी” — यह विवरण सीधे तौर पर जैविक प्रक्रिया की भाषा बोलता है। यदि इसे शाब्दिक माना जाए तो यह अवधारणा स्पष्ट रूप से शारीरिक-मानवीय रूपक से भरी है।
तार्किक निष्कर्ष
- “वह निराकार है, पर दोनों हाथों से बनाता है।”
- “वह सर्वव्यापक है, पर रात को नीचे उतरता है।”
- “वह अमूर्त है, पर उंगलियों से दिलों को पकड़ता है।”
- “वह transcendent है, पर उसके सिंहासन को आठ फ़रिश्ते उठाते हैं।”
- “और सबसे अद्भुत — उसके दोनों हाथ दाहिने हैं!”
अंतिम प्रश्न
- अगर यह सब प्रतीकात्मक है, तो दोनों हाथ दाहिने क्यों?
- अगर वह निराकार है, तो वज़नदार सिंहासन क्यों?
- अगर वह सर्वज्ञ है, तो ग़ुस्से में क्यों आता है?
- अगर वह अमूर्त है, तो नरक को भरने के लिए पैर क्यों रखता है?
- अगर वह transcendent है, तो स्पर्म जैसी थैली से वर्षा क्यों करता है?
यह न अद्वैत है, न दार्शनिक — बल्कि एक अर्ध-मानवीय और मूर्तिपूजक परंपरा का रूपांतर है।

विद्वानों की व्याख्या
क़लामी और सूफ़ी-दार्शनिक परम्पराएँ इन शब्दों को प्रतीकात्मक कहकर बचाव करती हैं। उनके अनुसार कुरआन और हदीस में प्रयुक्त मानवीय भाषा केवल मानव-समझ के लिए है; यह आवश्यक नहीं कि हर शब्द का शाब्दिक अर्थ लिया जाए।
इसीलिए यहाँ “मुश्तबह” (mutashabih) और “बिला कैफ़” (bila kayf) जैसे सिद्धांत प्रयोग होते हैं — जहाँ कहा जाता है: “अर्थ अल्लाह जानता है, हम नहीं।”
कृपया इन विषयों पर हमारा लेख Mutashabih और Bila Kayf भी देखें।
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