जहाँ शरीयत लागू नहीं है — यूरोप, अमेरिका और भारत में मुस्लिम समाज

1) प्रस्तावना

अक्सर कहा जाता है कि — “जहाँ शरीयत नहीं है, वहाँ मुसलमान असुरक्षित हैं।”
लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और बताती है।

यूरोप, अमेरिका और भारत जैसे देशों में मुसलमानों को संवैधानिक अधिकार, शिक्षा, वोट और रोज़गार की स्वतंत्रता मिलती है। फिर भी, कई बार ये समाज अपने ही भीतर बंद गेट्टो (ghetto) बना लेते हैं और कानून से ऊपर शरीयत की माँग करते हैं।

सवाल:

  • क्या यह दिखाता है कि मुसलमान संविधान की सुरक्षा से संतुष्ट नहीं, बल्कि शरीयत की ओर ही खिंचाव रखते हैं?
  • और जब शरीयत लागू नहीं होती, तो क्या यह टकराव और अपराध का कारण बनती है?

2) यूरोप और ब्रिटेन — शरणार्थी संकट से पहले और बाद

पहले (1980s–1990s):

  • इंग्लैंड में कुछ मुस्लिम समुदायों ने शरिया काउंसिल बनाई थीं।
  • इनका काम था — निकाह, तलाक, हलाला और पारिवारिक विवादों को इस्लामी नियमों के अनुसार सुलझाना।
  • ये अदालतें नहीं थीं, बल्कि “मध्यस्थता निकाय” (arbitration bodies) थीं, जिन्हें Arbitration Act 1996 के तहत निजी विवाद सुलझाने की अनुमति थी।
  • मुस्लिम समुदाय ने इन्हें अपनाया ताकि तलाक, विरासत और पारिवारिक विवाद शरीयत के हिसाब से निपट सकें।

बाद में (2000s–2015 के बाद):

  • Syrian refugee crisis के बाद मुस्लिम आबादी बढ़ी और शरिया काउंसिलों का प्रभाव भी फैला।
  • आज इंग्लैंड में 80 से अधिक शरिया काउंसिल मानी जाती हैं।
  • आलोचकों के अनुसार ये अक्सर महिलाओं के अधिकारों के खिलाफ़ फैसले देती हैं (जैसे तलाक में दबाव, child custody में पक्षपात)।
  • 2018 में UK सरकार ने Independent Review into Sharia Councils कराया, जिसमें पाया गया कि इनका काम कई बार British Equality Laws से टकराता है।

ग्रोमिंग गैंग स्कैंडल (2000–2015):

  • रोदरहैम, रोशडेल, ऑक्सफोर्ड जैसे शहरों में हज़ारों ब्रिटिश लड़कियों का यौन शोषण हुआ।
  • ज्यादातर आरोपी पाकिस्तानी मूल के मुस्लिम पुरुष थे।
  • Jay Report (2014) में साफ़ कहा गया कि “इस्लामोफोबिया” के आरोप से बचने के लिए प्रशासन ने कार्रवाई देर से की।

सवाल:

  • क्या यह नैतिक है कि व्यक्तिगत मामलों में शरीयत के लिए अलग क़ानून माँगा जाए, लेकिन आपराधिक मामलों में बराबरी के नियम से भागा जाए?
  • क्या यह साबित नहीं करता कि जब कानून शरीयत से अलग होता है, तो कुछ मुस्लिम समूह अपने सांस्कृतिक नियम थोपने की कोशिश करते हैं?
  • और क्या यह कितमान (छुपाना) नहीं कि इस्लाम बलात्कार पर सख़्त सज़ा का दावा करता है, लेकिन पश्चिम में मुस्लिम गैंग बार-बार ऐसे मामलों में पकड़े जाते हैं?

3) फ्रांस, जर्मनी और स्वीडन — दंगे और टकराव

जर्मनी:

  • 2015 के बाद Syrian refugee crisis से मुस्लिम आबादी तेज़ी से बढ़ी।
  • कई जगहों पर तुर्की और अरब समुदायों ने शरिया-आधारित arbitration शुरू किया।
  • बर्लिन और नॉर्थ राइन-वेस्टफेलिया (NRW) में Friedensrichter (“peace judges”) यानी मुस्लिम धार्मिक नेता समानांतर अदालतें चलाते रहे।
  • ये मामले निपटाते थे —
    • पारिवारिक विवाद,
    • वैवाहिक समस्याएँ,
    • सम्मान हत्या (honor killing),
    • क्लैन हिंसा (clan violence)।
  • जर्मनी की सरकार और मीडिया ने इसे “parallel justice” कहकर आलोचना की।

फ्रांस (2020):

  • शिक्षक सैमुअल पैटी की हत्या — क्योंकि उन्होंने क्लास में चार्ली हेब्दो के कार्टून दिखाए।

स्वीडन (2022):

  • कुरान जलाने के खिलाफ़ मुस्लिमों के हिंसक दंगे।

जर्मनी (कोलोन 2016):

  • न्यू ईयर नाइट पर मुस्लिम शरणार्थियों द्वारा महिलाओं से बड़े पैमाने पर छेड़छाड़ और हमले।

सवाल:

  • जिस देश ने आपको शरण दी, वहाँ अपनी अलग अदालतें और कानून चलाना — वफ़ादारी है या ग़द्दारी?
  • क्या यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से टकराव नहीं है?
  • क्या यह नहीं दिखाता कि जहाँ शरीयत लागू नहीं है, वहाँ भी शरीयती मानसिकता खुद को कानून से ऊपर रखना चाहती है?

4) अमेरिका — मुस्लिम समाज और कट्टरता

  • न्यूयॉर्क (2001): 9/11 हमला — अल-कायदा द्वारा, कारण: “अमेरिका इस्लाम का दुश्मन है।”
  • बोस्टन (2013): त्सारनेव भाइयों का बम धमाका — मकसद: “इस्लामी बदला।”
  • FBI रिपोर्ट: कई अमेरिकी मुस्लिम युवा ऑनलाइन शरीयत आधारित खलीफ़ा के प्रचार से प्रभावित होकर आतंकवाद में शामिल हुए।

सवाल:

  • क्या इसका मतलब यह नहीं कि जहाँ संविधान अधिकतम स्वतंत्रता देता है, वहाँ भी कुछ मुसलमान शरीयत को लोकतंत्र से ऊपर मानते हैं?

5) भारत — “लव जिहाद”, दंगे और व्यक्तिगत कानून

भारत में मुसलमानों को संवैधानिक रूप से:

  • वोट का अधिकार,
  • अलग पर्सनल लॉ (शरिया आधारित),
  • वक़्फ़ बोर्ड,
  • हज सब्सिडी (2018 तक),
  • मदरसा शिक्षा की छूट मिली हुई है।

फिर भी:

  • लव जिहाद: केरल, उत्तर प्रदेश, हरियाणा आदि में अदालतें मान चुकी हैं कि धोखे से धर्मांतरण और निकाह कराए गए।
  • दंगे: भागलपुर (1989), गुजरात (2002), मुज़फ्फरनगर (2013), दिल्ली (2020)।
  • हिजाब विवाद (2022): कर्नाटक में यूनिफ़ॉर्म को लेकर टकराव, मामला संविधान बनाम शरीयत बन गया।

सवाल:

  • जब भारत का संविधान इतने अधिकार देता है, तो फिर बार-बार “शरीयत चाहिए” की माँग क्यों उठती है?
  • क्या यह साफ़ नहीं कि हर विवाद (मंदिर-मस्जिद, हिजाब, पर्सनल लॉ) अंततः शरीयत बनाम संविधान का टकराव बन जाता है?

6) विरोधाभास और विसंगतियाँ

  • यूरोप में कहा जाता है: “हम अल्पसंख्यक हैं, इसलिए असुरक्षित हैं।”
  • भारत में कहा जाता है: “हिंदुत्ववादी सरकार मुसलमानों को दबा रही है।”
  • लेकिन असली सवाल:
    • अगर यही लोग किसी शरीयती मुल्क (ईरान, सऊदी, पाकिस्तान) में होते और विरोध करते — तो क्या वे जीवित भी रहते?
  • क्या यह कितमान नहीं है कि पश्चिम और भारत में अधिकार लेकर भी शरीयत की माँग जारी रहती है, लेकिन शरीयती मुल्कों में ज़ुल्म पर चुप्पी रहती है?

7) निष्कर्ष

जहाँ शरीयत लागू नहीं है, वहाँ मुसलमान संवैधानिक अधिकारों के बावजूद कानून से ऊपर शरीयत की माँग करते हैं।

  • यूरोप: दंगे, गैंग, समानांतर अदालतें।
  • अमेरिका: कट्टरता और आतंक।
  • भारत: लव जिहाद, दंगे, पर्सनल लॉ टकराव।

अंतिम सवाल:

  • अगर शरीयत सचमुच न्यायप्रिय है, तो मुसलमान बराबरी और सुरक्षा पाकर भी बार-बार उसकी ओर क्यों लौटना चाहते हैं?
  • क्या यह साबित नहीं करता कि शरीयत सिर्फ़ धार्मिक नियम नहीं, बल्कि राजनीतिक सत्ता की माँग है?

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