जजिया: कर का बहाना या धार्मिक जुल्म की बेड़ियाँ?

परिचय

जजिया को “सामान्य कर” कहकर बचाने वाले मुस्लिम विद्वान ये क्यों भूल जाते हैं कि ये गैर-मुसलमानों की गर्दन पर तलवार रखकर वसूला जाता था? इस्लामिक विद्वान और मुसलमान ये कहकर जस्टिफाई करते हैं कि हिंदू जजिया देता था तो मुसलमान भी जकात देता था, पर दोनों एक नहीं हैं। भारत में जजिया कोई मामूली टैक्स नहीं था—ये इस्लाम का वो हथियार था, जिसने हिंदुओं को या तो मुसलमान बनने पर मजबूर किया, या उनकी कमर तोड़ दी। कुरान, हदीस, और इतिहास चीख-चीखकर कहते हैं कि जजिया शांति का पैगाम नहीं, धार्मिक उत्पीड़न का औजार था। इस लेख में हम जजिया और जकात के फर्क को बेनकाब करते हैं—ढोंग हटाते हैं, सच सामने लाते हैं।

भाग 1: जजिया—इस्लाम का जुल्मी कर

  • 1.1 जजिया क्या था? गैर-मुसलमानों (धिम्मियों) से वसूला जाने वाला कर, ताकि वो इस्लामी हुकूमत में अपने धर्म को बचाए रखें। इस्लाम में धिम्मी (ذمي‎) उन गैर-मुसलमानों को कहा जाता था, जो शरीयत कानून से संचालित इस्लामी राज्य में रहते थे। धिम्मी—यानी वो बेचारे जिन्हें इस्लाम ने दोयम दर्जे का बनाया। अधिकार? बस नाम के। इस्लाम कबूल करो, तो जजिया माफ—ये कर नहीं, जबरदस्ती का खेल था।
  • 1.2 कुरान का हुक्म: सूरह तौबा (9:29)—”जो अल्लाह और आखिरी दिन पर यकीन न करें, उनसे लड़ो, जब तक जजिया न दें, वो भी झुककर।” ये शांति का पैगाम नहीं, गैर-मुसलमानों को कुचलने का फरमान था। विद्वान इसे “संरक्षण कर” कहते हैं—किससे संरक्षण? उसी तलवार से, जो उनकी गर्दन पर थी?

भाग 2: जजिया का काला इतिहास

  • 2.1 मोहम्मद का दौर: जजिया की शुरुआत खुद मोहम्मद से हुई। खैबर के यहूदियों को लूटा, उनकी जमीन छीनी, और 50% आय कर के नाम पर वसूली—ये था इस्लाम का “न्याय”। सर विलियम मुइर अपनी किताब “मोहम्मद का जीवन” में चिल्लाकर कहते हैं: ये संरक्षण नहीं, शोषण था।
  • 2.2 उमर का जुल्म: हनफी फिकह की “हिदाया” (Book IX, Chapter 8) में खलीफा उमर ने जजिया को सिस्टम बनाया:
    • अमीर: 48 दिरहम (4/माह)
    • मध्यम: 24 दिरहम (2/माह)
    • गरीब: 12 दिरहम (1/माह)
      गरीब से भी छीना—क्या ये कर था, या गैर-मुसलमानों को तोड़ने की साजिश?

भाग 3: भारत पर जजिया की मार

  • 3.1 मुहम्मद बिन कासिम (712 ई.): सिंध पर हमला, हिंदुओं-बौद्धों की गर्दन पर जजिया की तलवार। ब्राह्मणों को पहले छूट दी, फिर बाद में कुचल दिया। (संदर्भ: “चचनामा”)
  • 3.2 फिरोज शाह तुगलक (14वीं सदी): ब्राह्मणों पर भी जजिया थोपा। दिल्ली में हड़ताल हुई, लेकिन शासक का जवाब? तलवार और जुल्म। विंसेंट स्मिथ अपनी किताब “द ऑक्सफोर्ड हिस्ट्री ऑफ इंडिया” में लिखते हैं—ये कर नहीं, उत्पीड़न था।
  • 3.3 औरंगजेब (1679 ई.): अकबर ने 9 साल हटाया, लेकिन औरंगजेब ने फिर लाद दिया—48, 24, 12 दिरहम। हर हिंदू की कमर तोड़ने का हथियार। (संदर्भ: “मासिर-ए-आलमगीरी”)

भाग 4: जकात बनाम जजिया—ढोंग का सच

  • 4.1 असली फर्क: जकात सिर्फ अमीर मुसलमानों पर—वो भी 2.5%, और गरीब मुसलमानों को उससे मदद। जजिया? हर गैर-मुसलमान पर—गरीब से भी छीना। मिसाल:
    • गरीब मुस्लिम: जकात से रोटी मिली।
    • गरीब हिंदू: जजिया देकर भूखा मरा।

4.2 नीयत का खेल: जकात दान था, जजिया जुल्म। एक ने समाज बनाया, दूसरे ने तोड़ा। जजिया इस्लाम कबूलने का दबाव था—नहीं माना, तो लुट गए। ये कर नहीं, गैर-मुसलमानों को कुचलने का हथियार था।

तत्वज़कातजज़िया
कर देने वालाअमीर मुसलमानगरीब और अमीर गैर-मुसलमान दोनों
दर2.5% (संपत्ति पर)निश्चित दर (12, 24, 48 दिरहम)
उद्देश्यगरीब मुसलमानों की भलाईगैर-मुसलमानों पर धार्मिक अधीनता थोपना
माफीगरीब मुसलमान ज़कात नहीं देतेगरीब गैर-मुसलमानों को भी देना पड़ता था
कानूनी स्थितिधार्मिक दायित्वइस्लामी शासन द्वारा अनिवार्य कर

भाग 5: आज की कीमत—जजिया का बोझ

  • 5.1 गणना: 1 दिरहम = 2.975 ग्राम चाँदी। सोना-चाँदी अनुपात 1:15.5। मार्च 2025 में सोना ₹8,684/ग्राम—1 दिरहम = ₹1,665।
    • अमीर: 48 × ₹1,665 = ₹79,920/वर्ष
    • मध्यम: 24 × ₹1,665 = ₹39,960/वर्ष
    • गरीब: 12 × ₹1,665 = ₹19,980/वर्ष
  • 5.2 सच: गरीब हिंदू से आज ₹19,980 छीनना—क्या ये संरक्षण है, या उसकी रोटी लूटना?

भाग 6: निष्कर्ष—जजिया का काला चेहरा

जजिया कोई कर नहीं, इस्लाम का जुल्मी हथियार था। जकात अमीर मुसलमानों पर, जजिया हर हिंदू पर—गरीब को भी नहीं बख्शा। खैबर से औरंगजेब तक, ये गैर-मुसलमानों को तोड़ने का जरिया रहा। ब्राह्मणों की छूट भी छीनी—फिरोज और औरंगजेब ने हिंदुओं की हड्डियाँ चबाईं। जो गरीब से भी रोटी छीने, उसे कर कहना ढोंग है—ये धार्मिक जुल्म था, और कुछ नहीं।

भाग 7: सवाल जो कचोटते हैं

  • जकात से गरीब को रोटी, जजिया से गरीब को भूख—ये कैसा न्याय?
  • कुरान का “झुककर जजिया” कहना संरक्षण है, या गुलामी की बेड़ी?
  • अगर ये कर था, तो गरीब हिंदू को क्यों नहीं छोड़ा गया?

शराब हराम हो सकती है, तो जजिया क्यों नहीं?
जजिया शांति का पैगाम नहीं, हिंदुओं को कुचलने का हथौड़ा था—इतिहास इसका गवाह है।

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