क्या सचमुच हर बच्चा मुसलमान पैदा होता है? – एक आलोचनात्मक विश्लेषण

भूमिका

मुस्लिम विद्वानों और दाई (प्रचारक) अक्सर यह दावा करते हैं कि “हर बच्चा मुसलमान पैदा होता है।”
यह दावा इस्लाम की दावत को आसान बनाने और यह दिखाने के लिए किया जाता है कि इस्लाम इंसान की “फितरत” (natural instinct) है।
लेकिन जब हम कुरान और हदीस को ध्यान से देखते हैं, तो यह दावा न केवल संदिग्ध साबित होता है, बल्कि कई जगहों पर विरोधाभासी (contradictory) भी नज़र आता है।


1. कुरान में यह दावा नहीं है

कुरान में कहीं भी यह नहीं लिखा कि हर बच्चा मुसलमान पैदा होता है।
हाँ, कुरान “फितरत” का ज़िक्र करता है:

सूरा अर-रूम 30:30
“तो अपना रुख़ सीधे दीन की तरफ़ रख – वही अल्लाह की बनाई हुई फितरत है, जिस पर उसने इंसानों को पैदा किया।”

लेकिन यहाँ “फितरत” का मतलब केवल यह है कि इंसान के अंदर सही-गलत पहचानने की क्षमता होती है।
इससे यह नहीं निकलता कि बच्चा जन्म से “मुसलमान” कहलाएगा।


2. हदीस का हवाला – असली स्रोत

“हर बच्चा मुसलमान पैदा होता है” वाला जुमला कुरान में नहीं, बल्कि हदीस में है।

सहीह बुख़ारी, किताबुल-जना’इज़ (हदीस 1385):

“हर बच्चा फितरत पर पैदा होता है। फिर उसके माँ-बाप उसे यहूदी, ईसाई या मजूसी बना देते हैं।”

इस हदीस में भी “फितरत” को “इस्लाम” से जोड़ना बाद के विद्वानों की व्याख्या है। हदीस का सीधा अर्थ है कि इंसान जन्म से एक सामान्य प्रवृत्ति पर होता है।

3. “फितरत” का असली अर्थ: जन्मजात प्रवृत्ति, न कि ‘पैदाइशी मुसलमान’

1. भाषाई जड़

  • “فطر (फ-त-र)” = फाड़ना, शुरुआत करना, उत्पन्न करना।
  • “फातिर (فاطر)” = आरम्भ करने वाला, सृष्टि करने वाला।
  • “फितरत (فِطْرَة)” = वह प्राकृतिक ढाँचा या प्रवृत्ति, जिस पर कोई चीज़ बनाई गई।

📖 कुरान में:

  • “الحمد لله فاطر السموات والأرض” (सूरा फ़ातिर 35:1) → आकाश और धरती का आरम्भ करने वाला अल्लाह है।
  • यहाँ “फातिर” = सृष्टि करने वाला।
  • तो “फितरत” = वह जन्मजात ढाँचा/स्वभाव, जो सृष्टिकर्ता ने इंसान में रखा।

सूरा अर-रूम 30:30

“फितरत-अल्लाह अल्लती फतर-अन-नास अलेहा”
= अल्लाह की वह प्रकृति/प्रवृत्ति जिस पर उसने इंसानों को पैदा किया।

  • यहाँ स्पष्ट है कि “फितरत” एक जन्मजात रुझान (प्रवृत्ति) है,
  • न कि किसी “धर्म का नाम”।

उदाहरण से समझें

  • किसी का “गुंडा या व्यभिचारी होना” एक विशेषता है, जो जन्म से नहीं आती, बल्कि समय के साथ कर्मों से बनती है।
  • उसी तरह “फितरत” इंसान की क्षमता/गुण है — अच्छाई, सच्चाई और ईश्वर की खोज की प्रवृत्ति।
  • यह नहीं कि बच्चा पेट से ही “मुसलमान” नामक पहचान लेकर निकले।

4. कलमा की शर्त और तार्किक विरोधाभास

इस्लाम में मुसलमान कहलाने की पहली शर्त है:
“ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर-रसूलुल्लाह” (कलमा-ए-शहादत)।

  • एक बच्चा जो अभी बोलना भी नहीं जानता, वह यह कलमा कैसे पढ़ सकता है?
  • अगर मौलवी नवजात शिशु के कान में कलमा बोल दे और उससे बच्चा “मुसलमान” हो जाए, तो फिर मस्जिद के लाउडस्पीकर से सुनने वाला हर शख़्स मुस्लिम क्यों नहीं हो जाता?

 इसका मतलब यह कि मुसलमान पैदा होना तर्क और शरीअत दोनों से असंभव है।


5. कुरान 7:179 से टकराव

अब असली विरोधाभास सामने आता है।

सूरा अल-आराफ 7:179

“हमने बहुत से जिन्न और इंसान जहन्नुम के लिए पैदा किए; उनके दिल हैं जिनसे वे समझते नहीं, उनकी आंखें हैं जिनसे वे देखते नहीं, उनके कान हैं जिनसे वे सुनते नहीं। वे चौपायों जैसे हैं, बल्कि उनसे भी ज्यादा भटके हुए।”

अगर हर बच्चा मुसलमान पैदा होता है, तो यह आयत क्यों कहती है कि कुछ इंसान और जिन्न जहन्नुम के लिए पैदा किए गए?

  • अगर वे जहन्नुम के लिए पैदा हुए, तो उनकी “फितरत” मुसलमान कैसे हो सकती?
  • यह सीधा विरोधाभास है: एक जगह हर बच्चा मुसलमान बताया जाता है, दूसरी जगह कुछ को सीधे जहन्नुम का ईंधन बताया जाता है।

6. इस विरोधाभास को कैसे छिपाते हैं विद्वान?

मुस्लिम विद्वान आमतौर पर कहते हैं:

  • “हर बच्चा फितरत (इस्लाम) पर है, लेकिन बाद में वह खुद बदल जाता है।”
  • “7:179 में जहन्नुम के लिए पैदा करना, मतलब अल्लाह को पहले से मालूम था कि वे गुमराह होंगे।”

लेकिन यह सफाई दो वजहों से कमजोर है:

  1. अगर अल्लाह को पहले से पता है और उसी हिसाब से पैदा करता है, तो फिर इम्तिहान (test) का कॉन्सेप्ट बेमानी हो जाता है।
  2. अगर वाकई जहन्नुम के लिए पैदा किए गए हैं, तो “हर बच्चा मुसलमान पैदा होता है” का दावा झूठ साबित होता है।

निष्कर्ष

  • कुरान में कहीं नहीं लिखा कि हर बच्चा मुसलमान पैदा होता है।
  • यह विचार केवल हदीस पर आधारित है और तर्क व शरीअत की कसौटी पर झूठा साबित होता है।
  • कुरान 7:179 इस दावे को सीधा गलत ठहराता है, क्योंकि वहाँ कहा गया है कि कुछ इंसान और जिन्न जहन्नुम के लिए पैदा हुए। अगर इस्लामी दवा स्वीकार करें तो विरोधाभास ये होगा की कुछ मसलन भी जहन्नुम के लिए पैदा किया।
  • हकीकत यह है कि “हर बच्चा मुसलमान” का दावा एक प्रचारित मिथक है, जिसका उद्देश्य गैर-मुस्लिम समाजों में इस्लाम को “नेचुरल” दिखाना है।

यह लेख आलोचना की बुनियाद पर साफ़ तौर पर बताता है कि “हर बच्चा मुसलमान पैदा होता है” एक झूठा दावा है और कुरान की अन्य आयतों से टकराता है।

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