इस्लाम में गोद लेना—”हराम की हकीकत”

परिचय

अगर अनाथ की देखभाल जन्नत दिलाती है, तो फिर इस्लाम में गोद लेने (Adoption) को हराम क्यों माना गया? इसका जवाब छुपा है एक विवादास्पद घटना में—जब पैग़म्बर मुहम्मद का दिल अपने गोद लिए बेटे ज़ैद की पत्नी ज़ैनब पर आया और उसके बाद गोद लेने पर पाबंदी की आयत नाज़िल हुई। सवाल यह उठता है: क्या यह अल्लाह का आदेश था, या पैग़म्बर की निजी मर्जी को “दैवी आदेश” का रूप दे दिया गया?

इस्लाम में “किफालत” यानी अनाथ की देखभाल पुण्य का काम माना जाता है, लेकिन गोद लेना और उसे अपना संतान मानना—यानी उसकी पहचान बदलना और उसे उत्तराधिकार देना—हराम ठहराया गया। सवाल उठता है कि ऐसा क्यों हुआ? आखिर वह कौन-सा प्रसंग था जिसने इस मानवीय परंपरा को तोड़कर लाखों अनाथों के अधिकारों को छीन लिया? यह विरोधाभास समझने के लिए हमें पैग़म्बर और उनकी दत्तक संतान ज़ैद इब्न हारिसा की कहानी तक जाना होगा।


1. ज़ैद – पैग़म्बर की दत्तक संतान

मुहम्मद ने एक गुलाम लड़के ज़ैद बिन हारिसा को गोद लिया और अरब की प्रथा के अनुसार उसे अपना बेटा घोषित कर दिया। समाज में उसे “ज़ैद इब्न मुहम्मद” कहा जाने लगा।

यह गोद लिए बेटे का सामाजिक और कानूनी अधिकार था कि वह वास्तविक पुत्र की तरह माना जाए।

  • सहीह बुखारी (4782) में भी ज़ैद का नाम साफ़ तौर पर “ज़ैद बिन मुहम्मद” के रूप में आया है।
  • तफ़सीर इब्न कसीर (Surah al-Ahzab 33:37, 33:40) में लिखा है:

“He (the Prophet) adopted Zayd bin Harithah before prophethood, and the people called him Zayd bin Muhammad, until Allah forbade that and revealed: ‘Muhammad is not the father of any of your men’ (33:40).”

  • तारीख़ अल-तबरी (Tarikh al-Rusul wal-Muluk, vol. 6, p. 6-7) में भी उल्लेख है:

“When Muhammad adopted Zayd, he was called ‘Zayd bin Muhammad’ by the people of Mecca.”

इन सभी स्रोतों से स्पष्ट है कि मुहम्मद ने ज़ैद को अपनाया और उसे अपना बेटा घोषित किया। लेकिन आगे चलकर यही दत्तक संबंध एक विवाद का कारण बन गया और पूरे गोद लेने की परंपरा पर प्रतिबंध लगा दिया गया।


2. ज़ैनब का विवाह – जबरदस्ती निकाह

ज़ैनब बिंत जहश, पैग़म्बर की चचेरी बहन, का निकाह ज़ैद से पैग़म्बर ने कराया। लेकिन इतिहास और तफ़सीरों के अनुसार, ज़ैनब इस विवाह के लिए तैयार नहीं थीं। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा:

“मैं क़ुरैश की औरत हूँ और ज़ैद एक गुलाम हैं। यह बराबरी का रिश्ता नहीं है।”

यह विरोध केवल व्यक्तिगत असहमति नहीं थी; यह उस सामाजिक असमानता और गुलामी के स्तर का स्पष्ट संकेत था, जिसे वे बराबरी का रिश्ता मानने योग्य नहीं समझती थीं।

संदर्भ:

  1. तफ़सीर इब्न कसीर (Surah al-Ahzab 33:36)

“The Prophet (ﷺ) asked for Zaynab bint Jahsh for Zayd bin Harithah, but she refused, saying: ‘I am of the Quraysh and he was a freed slave.’ Then Allah revealed the verse: ‘It is not for a believing man or a believing woman, when Allah and His Messenger have decided a matter, that they should [thereafter] have any choice about their affair’ (33:36).”

यानि, ज़ैनब ने स्पष्ट रूप से इंकार किया कि वह उच्च जाति की हैं और ज़ैद केवल एक मुक्त गुलाम हैं।

  1. तारीख़ अल-तबरी (Tarikh al-Rusul wal-Muluk, vol. 8, p. 97–98)

“The Messenger of God asked for Zaynab bint Jahsh for Zayd bin Harithah, but she refused and said: ‘I will not marry him, for I am the daughter of your aunt, and he was a slave.’ Then this verse (33:36) was revealed, and she submitted.”

इससे स्पष्ट होता है कि ज़ैनब ने पैग़म्बर को कहा कि सामाजिक और पारिवारिक असमानता के कारण वह विवाह के लिए तैयार नहीं हैं।

3. कुरतबी तफ़सीर – ज़ैनब की इच्छा का उल्लंघन

संदर्भ (Tafsir al-Qurtubi, Surah 33:36):

“When the Prophet proposed Zaynab for Zayd, she and her brother were unwilling… Then Allah revealed: ‘It is not for a believing man or woman, when Allah and His Messenger have decided a matter, to have any option in their affair’ (33:36). So she accepted.”

यानि, ज़ैनब और उसके भाई की स्पष्ट असहमति के बावजूद, कुरान की आयत के माध्यम से उनकी इच्छा को दरकिनार कर दिया गया।

कुरान 33:36 में कहा गया:

“जब अल्लाह और उसका रसूल किसी काम का फैसला कर दें तो किसी ईमान वाले पुरुष या स्त्री को अपने मामले में कोई इख़्तियार नहीं।”

इससे साफ़ है कि ज़ैनब की व्यक्तिगत इच्छा और सम्मान की कोई कद्र नहीं की गई।

निष्कर्ष:
ज़ैनब की व्यक्तिगत इच्छा और सामाजिक सम्मान की परवाह को दरकिनार कर, कुरान की आयत के माध्यम से यह विवाह ज़बरदस्ती सम्पन्न कराया गया। यह पहला संकेत था कि पैग़म्बर की व्यक्तिगत इच्छाएँ और आकर्षण कैसे “दैवी आदेश” के रूप में प्रस्तुत किए गए।


4. ज़ैनब को देखकर पैग़म्बर का प्रभावित होना

तफ़सीर और हदीस बताते हैं कि मुहम्मद एक दिन अचानक ज़ैद के घर पहुँचे और ज़ैनब को “बिना ढके” देखा। उनके मुंह से निकला:

سُبْحَانَ مُقَلِّبِ الْقُلُوبِ
“सुब्हान वह (अल्लाह) जो दिलों को फेर देता है।”

यह घटना दर्शाती है कि पैग़म्बर व्यक्तिगत आकर्षण के प्रभाव में आए।

संदर्भ:

  1. तफ़सीर अल-तबरी (Jami‘ al-Bayan, Surah al-Ahzab 33:37):

“The Messenger of Allah went out one day looking for Zayd. He came to his house, and behold Zaynab was standing, dressed only in her shift, and she was of the most beautiful women of Quraysh. The Prophet looked at her, then lowered his head and said: سُبْحَانَ مُقَلِّبِ الْقُلُوبِ. Then Zayd understood and said, ‘O Messenger of Allah, do you wish (her)? I will leave her.’”

  1. इब्न सअद – किताब अल-तबक़ात अल-कुबरा (Vol. 8, p. 101):

“The Messenger of Allah came to the house of Zayd bin Harithah, seeking him. He did not find him, but Zaynab bint Jahsh came out in a garment, her body uncovered. The Messenger of Allah saw her and turned away, saying: سُبْحَانَ اللَّهِ الْعَظِيمِ، سُبْحَانَ مُقَلِّبِ الْقُلُوبِ.”

निष्कर्ष:
ज़ैनब की इच्छा और पारिवारिक सम्मान की अवहेलना, और पैग़म्बर का व्यक्तिगत आकर्षण, इस पूरे विवाह विवाद की मुख्य जड़ हैं। यह स्पष्ट करता है कि गोद लिए बेटे के विवाह पर रोक और ज़ैनब के प्रति पैग़म्बर की इच्छा ने ही “गोद लेने पर हराम” की शर्त को जन्म दिया।


5. ज़ैद का तलाक़ और पैग़म्बर का विवाह

आख़िरकार, ज़ैद ने ज़ैनब को तलाक़ दे दिया।

संदर्भ (Tafsir al-Qurtubi, al-Jami‘ li Ahkam al-Qur’an, under 33:37):

“When the Prophet saw Zaynab, she was in her house, and he said: سُبْحَانَ اللَّهِ الْعَظِيمِ، سُبْحَانَ مُقَلِّبِ الْقُلُوبِ. Zayd came to know of this, so he said: ‘O Messenger of Allah, if you desire her, I will divorce her.’”

यानी, पैग़म्बर के शब्द “सुब्हान (पवित्र है) वह (अल्लाह) जो दिलों को फेर देता है” सुनकर ज़ैद समझ गए कि पैग़म्बर का दिल ज़ैनब की ओर झुका है।

ज़ैद ने पैग़म्बर से कहा:

“يا رسول الله! ائذن لي أن أطلقها”
(“ऐ रसूल, मुझे इजाज़त दीजिए कि मैं उसे तलाक़ दे दूँ।”)

पैग़म्बर ने औपचारिक तौर पर कहा: “अपनी बीवी को अपने पास रखो”, लेकिन उनके मन में झुकाव पहले से मौजूद था। अंततः ज़ैद ने तलाक़ दे दिया।

इसके बाद कुरान की आयत 33:37 उतरी:

“और (हे नबी!) याद करो जब तुम उस व्यक्ति (ज़ैद) से कह रहे थे जिस पर अल्लाह ने अनुग्रह किया और तुमने भी अनुग्रह किया: ‘अपनी पत्नी को अपने पास रखो और अल्लाह से डरो।’ लेकिन तुम अपने मन में वह छिपा रहे थे जिसे अल्लाह प्रकट करने वाला था, और तुम लोगों से डरते थे, जबकि अल्लाह इससे अधिक हक़दार है कि तुम उससे डरो। फिर जब ज़ैद ने उससे अपना संबंध समाप्त कर लिया, हमने उसे तुम्हारे निकाह में दे दिया, ताकि ईमान वालों पर उनके दत्तक बेटों की पत्नियों के बारे में कोई संकोच न रहे जब वे उनसे नाता तोड़ लें। और अल्लाह का आदेश तो हो कर ही रहता है।”

मुख्य बिंदु:

  1. “तुम अपने मन में छिपा रहे थे…” → पैग़म्बर की निजी इच्छा और आकर्षण को छिपाया गया।
  2. “लोगों से डरते थे…” → सामाजिक आलोचना और विरोध का डर।
  3. “हमने उसे तुम्हारे निकाह में दे दिया…” → कुरान ने ज़ैनब के पैग़म्बर से विवाह को सीधे वैध घोषित किया।

प्रमुख आलोचनात्मक पहलू:

  • ज़ैनब का पहला निकाह (33:36) पहले ही उसके अधिकार और इच्छा के खिलाफ ज़बरदस्ती हुआ था।
  • पैग़म्बर का व्यक्तिगत आकर्षण, जिसे बाद में कुरान की आयत 33:37 के माध्यम से वैध ठहराया गया, गोद लिए बेटे की पत्नी से विवाह का मार्ग खोलता है।
  • इसी घटना के बाद गोद लेने की परंपरा का अधिकारपूर्ण स्वरूप खत्म कर दिया गया
  • स्पष्ट है कि पैग़म्बर की निजी इच्छा को “अल्लाह का हुक्म” के रूप में प्रस्तुत किया गया, और दत्तक पुत्र की पत्नी से विवाह को औपचारिक रूप से जायज़ घोषित किया गया।

6. ज़ैनब का विरोध – “आप मेरे लिए पिता जैसे हैं”

ज़ैनब का पहले इंकार

जब ज़ैद ने तलाक़ दे दिया और पैग़म्बर ﷺ ने खुद ज़ैनब से विवाह करने की इच्छा जताई, तो ज़ैनब ने स्पष्ट रूप से विरोध किया।

तफ़सीर अल-तबररी (33:36–37) में लिखा है:

“فلما قضى زيد منها وطرا زوجناكها، قالت زينب: ما أنا بصانعة شيئاً حتى أوامر ربي. فأنزل الله: وما كان لمؤمن ولا مؤمنة إذا قضى الله ورسوله أمراً أن يكون لهم الخيرة من أمرهم।”

अनुवाद:

“ज़ैनब ने कहा: ‘मैं कुछ नहीं करूँगी जब तक मेरा रब आदेश न दे।’”

यानी, शुरुआत में ज़ैनब मुहम्मद से विवाह के लिए तैयार नहीं थीं


“आप मेरे लिए पिता/मामा समान हैं” – विरोध का स्पष्ट बयान

जब पैग़म्बर ﷺ ने सीधे ज़ैनब से विवाह का प्रस्ताव रखा, तो उन्होंने कहा:

“أنت خالي” (anta khālī) – “आप मेरे लिए मामा/पिता जैसे हैं।”

यह बयान कई इस्लामी स्रोतों में दर्ज है:

  1. इब्न सअद – अल-तबक़ात अल-कुबरा, Vol. 8, p. 101

جاء النبي صلى الله عليه وسلم إلى زينب بنت جحش فخطبها، فقالت: يا رسول الله إني لا أجد في نفسي شيئًا، إنك خالي.

“पैग़म्बर ﷺ ज़ैनब बिन्त जहश के पास निकाह का प्रस्ताव लेकर आए। उसने कहा: हे अल्लाह के रसूल, मैं इसके लिए राज़ी नहीं हूँ, क्योंकि आप मेरे लिए मामा समान हैं।”

  1. तफ़सीर अल-तबररी, Vol. 22, p. 11

وذكر أنّ النبي صلى الله عليه وسلم خطب زينب بنت جحش فقالت: إني أراك خالي، فلست أرضى بك زوجًا.

“रिवायत है कि जब पैग़म्बर ﷺ ने ज़ैनब से विवाह का प्रस्ताव किया, तो उसने कहा: मैं आपको मामा समान समझती हूँ, इस कारण मैं पति के रूप में स्वीकार नहीं कर सकती।”

  1. इब्न कसीर – तफ़सीर 33:36

وروى بعضهم أنّ زينب قالت حين خطبها النبي صلى الله عليه وسلم: أنت خالي، أفتنكح خاليتك؟!

“कुछ रिवायतों में आया है कि जब पैग़म्बर ﷺ ने प्रस्ताव रखा तो उसने कहा: आप मेरे मामा जैसे हैं, क्या कोई अपनी मामी से विवाह करता है?!”

  1. अल-सीरा अल-हलबिया (अली अल-हलबी, खंड 3)

لما خطبها رسول الله قالت: أنت خالي، فلا أرضى.

“जब पैग़म्बर ﷺ ने उनसे विवाह का प्रस्ताव किया तो उसने कहा: आप मेरे मामा/पिता समान हैं, इसलिए मैं राज़ी नहीं हूँ।”


विश्लेषण

  • यह स्पष्ट करता है कि ज़ैनब ने शुरुआत में विवाह को ठुकराया, और पैग़म्बर को “पिता/मामा समान” कहकर सीधे अस्वीकार किया।
  • तलाक़ के बाद ज़ैनब ‘इद्दत’ (संस्कार अवधि) में थीं। इद्दत समाप्त होने पर पैग़म्बर ﷺ ने ज़ैद के माध्यम से संदेश भेजा।
  • ज़ैद को अपनी ही पूर्व पत्नी को किसी और से विवाह के लिए प्रस्ताव देना कठिन लगा, लेकिन उन्होंने पैग़म्बर का आदेश माना।
  • ज़ैनब ने तुरंत निर्णय नहीं लिया और कहा: “मैं कुछ नहीं करूँगी जब तक अपने रब से पूछकर फैसला न करूँ।”
  • इसी समय कुरान की आयतें 33:37 और 33:50 नाज़िल हुईं, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि यह विवाह अल्लाह के आदेश से है।
  • परिणामस्वरूप पैग़म्बर ﷺ ने ज़ैनब से व्यक्तिगत अनुमति लिए बिना विवाह तय कर दिया।

7. लोगों की आलोचना और नई आयतें

मदीना में यह घटना फैल गई कि पैग़म्बर ﷺ ने अपने दत्तक बेटे ज़ैद की तलाक़शुदा पत्नी ज़ैनब से विवाह कर लिया

इस पर जनता में नैतिक आलोचना शुरू हो गई। लोग पूछने लगे:

“क्या गोद लिया बेटा असली बेटा नहीं होता?”

इस आलोचना के जवाब में कुरान में कई आयतें नाज़िल हुईं, जो इस विवाह और गोद लेने की परंपरा को संबोधित करती हैं:

  1. कुरान 33:40 –

“मुहम्मद किसी आदमी के बाप नहीं हैं।”

  1. कुरान 33:4–5 –

“अपने दत्तक बेटों को असली बेटा मत कहो; उन्हें उनके असली बाप के नाम से पुकारो।”

विश्लेषण:

  • ये आयतें सीधे तौर पर गोद लेने की प्रथा को प्रतिबंधित करती हैं।
  • इसका उद्देश्य था कि पैग़म्बर ﷺ के व्यक्तिगत विवाह को सही ठहराने के लिए गोद लेने को हराम घोषित किया जाए।
  • सहीह बुखारी (2641) में भी हदीसें इस घटना पर लोगों की आलोचना को ध्यान में रखते हुए सफाई देने की कोशिश दिखाती हैं।
  • इब्न हिशाम (सीरत) के अनुसार, ये आयतें तब नाज़िल हुईं जब ज़ैनब के विवाह के बाद जनता ने सवाल उठाए थे।

नैतिक प्रश्न:

इस घटना के आधार पर यह सवाल उठता है:

क्या अल्लाह की नजर में वंश और विरासत का अधिकार, मानवता और अनाथ बच्चों की भलाई से अधिक महत्वपूर्ण था?

  • पैग़म्बर ﷺ के निजी आकर्षण और राजनीतिक/सामाजिक स्थिति ने सीधे तौर पर अनाथ बच्चों के अधिकारों और गोद लेने की पारंपरिक मानवीय प्रथा को प्रभावित किया।
  • इस घटना के परिणामस्वरूप गोद लेना पूरी तरह से हराम कर दिया गया, और दत्तक पुत्र को असली पुत्र मानने का अधिकार समाप्त कर दिया गया।

8. मेहमानों पर नाराज़गी और नई पाबंदी

जब पैग़म्बर ﷺ ने अपने दत्तक-पुत्र ज़ैद की तलाक़शुदा पत्नी ज़ैनब बिन्त जहश से विवाह किया, तो एक बड़ी दावत (वलीमा) रखी गई।

  • कई सहाबी आए, खाना खाया, लेकिन उसके बाद भी बैठे रहकर बातें करने लगे।
  • पैग़म्बर ﷺ को यह बहुत नागवार गुज़रा, क्योंकि वे अपनी नई पत्नी के पास जाना चाहते थे।
  • वे उठकर बाहर चले गए, ताकि लोग समझ जाएँ और निकल जाएँ। लेकिन जब वे लौटे, कुछ लोग अभी भी बैठे थे।

आयत का उतारना

इस पर कुरान 33:53 नाज़िल हुई:

“हे ईमानवालों! नबी के घरों में मत जाया करो, सिवाय इसके कि तुम्हें खाने के लिए इजाज़त दी जाए — और वह भी इस तरह कि उसके पक जाने का इंतजार न करो। जब तुम्हें बुलाया जाए, तब जाओ; और जब खाना खा लो, तो तुरंत चले जाओ, और बातचीत में न लिपटो। यह नबी को तकलीफ़ देता है, मगर वह तुमसे शर्माते हैं। लेकिन अल्लाह सत्य कहने से नहीं शर्माता…”

संदर्भ:

  • सहीह बुख़ारी 4793सहीह मुस्लिम 1428तफ़सीर अल-तबररीइब्न सअद, अल-तबक़ात
  • हदीसों के अनुसार पैग़म्बर ﷺ शर्मीले और लज्जालु थे (ḥayyiyyan), “The Prophet (ﷺ) was a very shy person (كَانَ رَسُولُ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم حَيِيًّا), so he went out…”
  • यहाँ “ḥayyiyyan” (حَيِيًّا) शब्द आया है, जिसका मतलब है:

    शर्मीला / लज्जालु
    हदीस आगे कहती है फिर जब वह वापस आए तो कुछ लोग अब भी बैठे थे। जिस पर यह आयात नाजिल हुई।

    इन सब बातों से सम्भावना पैदा होती है कि वो लोग ज़ैनब से निकाह पर चर्चा कर रहे थे जिस से शर्मा कर नबी मुहम्मद बहार गए।

सामाजिक और आलोचनात्मक विश्लेषण

  • यह घटना केवल शिष्टाचार का आदेश नहीं थी।
  • ऐतिहासिक स्रोतों से स्पष्ट है कि लोग इस विवाह पर सवाल और फुसफुसाहट कर रहे थे।
  • अरब समाज में दत्तक बेटे की पत्नी से विवाह बेहद अस्वीकार्य माना जाता था।
  • इसलिए, कुरान 33:37 और 33:40 में ज़ैद को “गोद लिया बेटा नहीं” कहकर दत्तक प्रथा को खत्म किया गया।
  • उसी समय आयत 33:53 में नबी की पत्नियों के साथ सीधे मिलने पर पर्दे (हिजाब) का आदेश भी आया, ताकि सामाजिक आलोचना और निजी जीवन पर दबाव को नियंत्रित किया जा सके।

निष्कर्ष:

  • इस घटना से साफ़ होता है कि कुरान और हदीस में कई आदेश नबी की व्यक्तिगत इच्छाओं और सामाजिक दबावों को वैध ठहराने के लिए आए।
  • गोद लेने और सामाजिक आचार-विचार की प्रथा, व्यक्तिगत आकर्षण और राजनीतिक स्थिति के कारण प्रभावित हुई।

9. अपनी इच्छा पूर्ति के लिए अल्लाह और मुहम्मद का असाधारण फैसला

1. ज़ैद का नाम कुरान में

कुरान 33:37 में ज़ैद का नाम स्पष्ट रूप से आया है। यह अत्यंत असाधारण है क्योंकि:

  • नबी मुहम्मद के माता-पिता अब्दुल्लाहआमिना, उनकी पहली पत्नी ख़दीजा या प्रिय सहबियों (अबू बकर, उमर, अली आदि) का नाम कुरान में कभी नहीं आया।
  • यहाँ सिर्फ़ ज़ैद बिन हारिथा (जो पहले गुलाम और बाद में दत्तक पुत्र बने) का नाम लिया गया।

यह संकेत करता है कि यह आयत व्यक्तिगत घटना पर उतरी, न कि किसी सार्वभौमिक “दुनिया की भलाई” वाला नियम के लिए।

2. नाम लेने का कारण

तफ़सीरों (इब्न कसीर, तबररी, क़ुर्तुबी) के अनुसार:

  • लोग नाराज़ थे कि पैग़म्बर ﷺ ने अपने दत्तक बेटे की तलाक़शुदा पत्नी से विवाह किया।
  • अरब समाज में इसे बड़ा कलंक माना जाता था।
  • इसलिए कुरान ने ज़ैद का नाम लेकर स्पष्ट किया कि वह केवल “दत्तक” बेटा था, असली खून का बेटा नहीं।
  • यानी, आयत सीधे इस व्यक्तिगत स्थिति को वैध ठहराने के लिए उतरी।

3. सवाल: व्यक्तिगत इच्छा या दिव्य आदेश?

  • यदि कुरान “लौह-ए-महफ़ूज़” में सृष्टि से पहले लिखा गया, तो यह सवाल उठता है कि:
    1. क्या अल्लाह ने पहले से ही ज़ैद से जैनब का निकाह फिर तलाक़ और फिर ज़ैनब से मुहम्मद का निकाह तय कर रखा था? (जबकि जैनब मुहम्मद कि चचेरी बहन थी बचपन से देखा पर आकर्षण जैद से विवाह करने के बाद आया)
    2. क्या यह ब्रह्मांडीय संदेश का हिस्सा है कि ज़ैद का नाम हमेशा के लिए कुरान में रहेगा, जबकि मुहम्मद के माता-पिता का नाम नहीं आया?

यह आलोचकों के लिए स्पष्ट संकेत है कि 33:37 आयत मुहम्मद की व्यक्तिगत शादी को “दैवी आदेश” का रूप देने के लिए उतरी थी।


10. किफालत का बहाना

  • इस्लाम “किफालत” (देखभाल) को पुण्य मानता है:
    • सहीह बुखारी 6005: “अनाथ की देखभाल करने वाला जन्नत में मेरे साथ होगा।”
  • लेकिन गोद लेना (Adoption) हराम है, क्योंकि बच्चे की पहचान और वंश को बदलना मना है।

सवाल उठता है: देखभाल करना पुण्य है, पर उसे अपना कहना हराम—क्या यह दया है या दिखावा?


महरम का पेच

  • कुरान 24:31 के अनुसार, महरम के सामने पर्दा नहीं
  • गोद लिया बच्चा महरम नहीं माना जाता, यानी गोद ली बेटी से भी विवाह theoretically संभव है
  • लेकिन नैतिक और सामाजिक दृष्टि से, जिस बच्चे को बचपन से पाला गया हो, उसके साथ हमबिस्तरी की स्वीकृति नैतिकता के खिलाफ मानी जाएगी।

11. आलोचनात्मक दृष्टि

इस पूरी घटना से कई महत्वपूर्ण निष्कर्ष सामने आते हैं:

  1. ज़ैनब की स्वतंत्र इच्छा कुचली गई
    • पहले उसे जबरन ज़ैद से विवाह करना पड़ा।
    • तलाक़ के बाद भी विरोध करने पर कुरान की “आयत” के नाम पर उसकी व्यक्तिगत इच्छा को दबा दिया गया।
  2. अनाथों और गोद लिए बच्चों का अधिकार छीना गया
    • पैग़म्बर की निजी इच्छा को सही ठहराने के लिए गोद लेने जैसी मानवीय और नैतिक परंपरा को समाप्त कर दिया गया।
    • इस फैसले ने अरब और बाद में मुस्लिम समाज में अनाथ बच्चों के अधिकारों पर स्थायी प्रभाव डाला।
  3. समाज को भारी नुकसान
    • मुस्लिम समाज में आज तक गोद लेने की प्रथा हराम मानी जाती है।
    • लाखों यतीम बच्चों को परिवार और पहचान मिलने का अवसर नहीं मिलता।

12. निष्कर्ष

  • मुहम्मद और ज़ैनब की व्यक्तिगत घटना ने पूरे इस्लामी समाज से गोद लेने की परंपरा को मिटा दिया।
  • यह केवल एक व्यक्ति की इच्छा को ईश्वरीय आदेश में बदलने का उदाहरण है।
  • आज ज़रूरत है कि मुसलमान समाज कुरान और हदीस की इन घटनाओं पर पुनर्विचार करे और मानवता के लिए मार्ग खोले।
  • यदि मुस्लिम परिवार इस नियम को दरकिनार कर अनाथ बच्चे को गोद ले, उसको वसीयत और उत्तराधिकार में शामिल करें तो 58 मुल्कों के रोड़ों यतीम बच्चों को जीवन, सुरक्षा और पहचान मिल सकती है।

संदर्भ

  1. सहीह बुखारी: 4782, 2641, 4793, 4795, 6005
  2. सहीह मुस्लिम: 1428
  3. तफ़सीर इब्न कसीर, Surah al-Ahzab 33:36–37
  4. तफ़सीर अल-कुर्तबी, Surah 33:37
  5. तफ़सीर अल-तबररी, vol. 22, p. 11
  6. इब्न सअद, अल-तबक़ात अल-कुबरा, vol. 8, p. 101
  7. अल-हलबिया, खंड 3
  8. Tariikh al-Tabari, vol. 6, 8

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