इस्लाम के सामरिक सिद्धांत: मज़हबी व्यवस्था या वैश्विक विस्तार की रणनीति?

(संदर्भों सहित आलोचनात्मक विश्लेषण)

प्रस्तावना – बुनियादी कथन

इस्लाम की परिभाषा उसकी मूल पुस्तकों — क़ुरान और सहीह हदीस — से निर्धारित होती है।
जो कुछ इन ग्रंथों में लिखा गया है, वह हर मुसलमान पर फ़र्ज़ (कर्तव्य) है, और हदीस में वर्णित आचरण को सुन्नत माना जाता है।
जो व्यक्ति इन आदेशों और निर्देशों का पालन नहीं करता, वह इस्लामी परिभाषा के अनुसार मुसलमान नहीं रहता, बल्कि मुनाफ़िक़ (कपटी) की श्रेणी में आ जाता है।

इसलिए जिहाद, दारुल-इस्लाम, ताक़िय्या, हुदना, जज़िया, खिलाफ़त जैसी शिक्षाएँ इस्लाम की केन्द्रीय व्यवस्थाएं हैं, जिन्हें मज़हबी नहीं, बल्कि रणनीतिक आदेश की तरह समझना ज़रूरी है।

जब कोई धर्म केवल आध्यात्मिक मुक्ति तक सीमित रहता है, तो वह आत्मा की बात करता है।
पर जब वही धर्म क़ानून, राजनीति और युद्ध की रणनीति देने लगे, तो वह केवल “धर्म” नहीं, बल्कि राजनैतिक-दृष्टिकोन वाली योजना बन जाता है।

इस्लाम में शरीअत आधारित संरचना के माध्यम से कई ऐसे सिद्धांत मौजूद हैं जो केवल उपासना तक सीमित नहीं हैं, बल्कि पूरी दुनिया पर इस्लामी शासन स्थापित करने के सुनियोजित सिद्धांत हैं।

1. दारुल-इस्लाम बनाम दारुल-हरब — इस्लामी विश्वदृष्टि

📚 स्रोत:

  • अल-हिदायह — इमाम अल-मरगिनानी (१२वीं सदी, हनफ़ी फ़िक़्ह)
  • इब्न तैमिय्या — जिहाद और सत्ता पर लेख

📖 मूल विचार:
इस्लाम में देश या राष्ट्रवाद (Nationalism) का कोई स्थान नहीं है।
पूरी दुनिया को केवल दो हिस्सों में बाँटा गया है:

  1. दारुल-इस्लाम (इस्लाम का घर) — जहाँ शरीअत लागू है।
  2. दारुल-हरब (युद्ध का घर) — जहाँ इस्लाम लागू नहीं, जिसे इस्लामी शासन में लाना फ़र्ज़ है।

“जहाँ इस्लामी क़ानून लागू हो, वह दारुल-इस्लाम है। बाकी सब दारुल-हरब है, जब तक इस्लाम वहाँ न पहुँच जाए।”अल-हिदायह

➡ इसलिए एक मुसलमान की वफ़ादारी किसी देश या संविधान से नहीं, बल्कि दारुल-इस्लाम और उम्माह से होती है।

2. जिहाद — संघर्ष या विस्तारवाद?

📚 स्रोत:

  • क़ुरान: सूरा तौबा 9:5, 9:29; सूरा मुहम्मद 47:4
  • सहीह बुखारी: हदीस 6924

📖 क़ुरान 9:5:

“और जब हराम महीने बीत जाएँ, तो मुशरिकों को जहाँ पाओ, मारो…”

📖 क़ुरान 9:29:

“जो लोग किताब वाले नहीं हैं उनसे लड़ो… जब तक वे जज़िया देकर अधीन न हो जाएँ।”

📖 बुखारी 25:

“मुझे आदेश मिला है कि मैं तब तक लोगों से युद्ध करूँ जब तक वे ‘ला इलाहा इल्लल्लाह’ न कहें।”

Sahih Bukhari 25
Scan from sunna.com
Sahih Bukhari 6924
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➡ जिहाद केवल “आत्मिक संघर्ष” नहीं, बल्कि राजनैतिक और सैन्य रणनीति है।

3. ताक़िय्या और हुदना — रणनीतिक छल और प्रतीक्षा

📚 स्रोत:

  • क़ुरान: 3:28, 16:106
  • सुल्ह-ए-हुदैबिया (628 ई.)

📖 क़ुरान 3:28:

“ईमानवाले काफ़िरों को अपना मित्र न बनाएं… सिवाय इसके कि तुम उनसे कोई सुरक्षा चाहते हो (तुक़ात – ताक़िय्या)।”

📖 सुल्ह-ए-हुदैबिया:
नबी मोहम्मद ने मक्का के क़ुरैश से 10 वर्षों की संधि की, लेकिन 2 साल में ही तोड़ दी (फतह मक्का – 630 ई.)

➡ इस्लाम में यह मान्यता है कि कमज़ोर होने पर शांति करो, और मज़बूत होते ही संधि तोड़ दो — यह “हुदना” है।
ताक़िय्या — धार्मिक पहचान छुपाना — को भी पवित्रता की तरह देखा जाता है।

4. खिलाफ़त और उम्माह — वैश्विक इस्लामी सत्ता का स्वप्न

📚 स्रोत:

  • सहीह मुस्लिम: हदीस 2586
  • अबुल आला मौदूदी: खिलाफ़त ओ मुलूकियत, Towards Understanding Islam

“मुसलमान एक शरीर की तरह हैं, जब एक अंग को दर्द होता है तो पूरा शरीर प्रतिक्रिया करता है।” — सहीह मुस्लिम 2586

Sahi Muslim 2586
Scan from sunna.com

➡ उम्माह का अर्थ है: पूरी दुनिया के मुसलमानों की एकता, जिसमें देश की सीमाएं गौण हो जाती हैं।
लक्ष्य: एक सार्वभौमिक खिलाफ़त स्थापित करना।

5. गैर-मुस्लिम नीति — जज़िया और अधीनता

📚 स्रोत:

  • क़ुरान 9:29
  • तबरी, ख़लीफ़ा उमर के आदेश

“उनसे लड़ो… जब तक वे जज़िया दें और अधीन न हो जाएं।” — क़ुरान 9:29

➡ यहूदियों और ईसाइयों से जज़िया लेकर उन्हें रहने दिया जाता था।
हिंदुओं जैसे बहुदेववादी समाजों को दो ही विकल्प दिए जाते थे — इस्लाम अपनाओ या युद्ध झेलो।

6. इस्लामी सर्वोच्चता का उद्देश्य

📚 स्रोत:

  • क़ुरान: 9:33, 61:9
  • इब्न खलदून: मुकद्दिमा

“अल्लाह ने अपने रसूल को मार्गदर्शन और सच्चे धर्म के साथ भेजा ताकि वह अन्य सभी धर्मों पर विजयी हो।” — क़ुरान 9:33

➡ इस्लाम सह-अस्तित्व नहीं चाहता — उसका उद्देश्य है अन्य सभी धर्मों पर प्रभुत्व।

7. चरणबद्ध विस्तार — पहले उपदेश, फिर आक्रमण

📚 स्रोत:

  • सीरत-उन-नबी (इब्न हिशाम)
  • मक्का और मदीना काल

मक्का काल: “तुम्हारे लिए तुम्हारा धर्म, मेरे लिए मेरा धर्म” — क़ुरान 109:6
मदीना काल: “मुशरिकों को मारो, पकड़ो, घेरो…” — क़ुरान 9:5

➡ इस्लामिक विस्तार की नीति तीन चरणों में चलती है:

  1. कमज़ोर अवस्था: शांति और उपदेश
  2. मध्यम बल: संधियाँ, धैर्य
  3. बलशाली अवस्था: खुला युद्ध और अधीनता

निष्कर्ष — एक मज़हबी साम्राज्य की रणनीति

सिद्धांत–  रणनीतिक उद्देश्य

दारुल-इस्लाम / हरब – इस्लामी शासन का विस्तार; राष्ट्रवाद का निषेध

जिहाद- राजनैतिक-धार्मिक युद्ध

ताक़िय्या / हुदना- रणनीतिक झूठ और प्रतीक्षा

खिलाफ़त / उम्माह- वैश्विक इस्लामी सत्ता

जज़िया / अधीनता- गैर-मुस्लिमों को अपमानपूर्वक अधीन बनाना

चरणबद्ध नीति- पहले उपदेश, फिर आक्रमण, अंततः विजय

सर्वोच्चता- इस्लाम को सभी धर्मों पर विजयी बनाना

अंतिम पुनर्पुष्टि:

📜 इस्लाम केवल अपनी किताबों से, क़ुरान और हदीस से है — इनके बाहर कुछ नहीं।
जो इनमें वर्णित है — चाहे जिहाद हो या ताक़िय्या — वह हर मुसलमान पर फ़र्ज़ है।
और जो इसे अस्वीकार करे, वह इस्लाम की परिभाषा में मुसलमान नहीं।

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