असलिमोमिन.कॉम पर आपका स्वागत है

मैं असली मोमिन, आप सबका तहे दिल से स्वागत करता हूँ।
मैं एक भारतीय हूँ, और मेरी बस यही ख्वाहिश है कि हमारा देश तरक्की करे, यहाँ शांति रहे और हम सब आगे बढ़ें।

भारत एक विशाल और विविधताओं से भरा देश है। अलग-अलग मान्यताओं में मतभेद होना स्वाभाविक है। लेकिन जब ये मतभेद कट्टरवाद और असहिष्णुता में बदल जाते हैं, जब सहजीविता का अभाव हो जाता है, तब यह एक गहरी समस्या बन जाती है।

इस वेबसाइट का उद्देश्य क्या है?

क्यों कुछ विचारधाराएँ और समूह यह मान्यता फैलाते हैं कि –

  • भारत का राष्ट्रगीत हराम है
  • भारत माता की जय हराम है
  • वन्दे मातरम् हराम है
  • भारत का अशोक चिन्ह हराम है

हमारा प्रयास केवल यह समझने का है कि ऐसी सोच और राजनीति कहाँ से और किस कारण उत्पन्न हो रही है।


सवाल – क्यों सिर्फ़ इस्लाम पर?

आप पूछेंगे — “अगर मक़सद शांति और सह-अस्तित्व है तो फिर सिर्फ़ इस्लाम पर ही क्यों लिखते हो?”

मेरा उत्तर सरल है:
🔹 यह मेरा शोध और रुचि है।
🔹 अगर आपको किसी दूसरी मान्यता में कमी लगती है, तो आप भी स्वतंत्र हैं उस पर लिखने और आवाज़ उठाने के लिए।

Aslimomin.com पर सभी का स्वागत है — चाहे आप हिंदू हों, मुस्लिम हों या किसी और धर्म से हों।
अगर आप मुस्लिम हैं तो भी पढ़िए, और फिर खुद से पूछिए:
👉 क्या किताबों में लिखा हुआ सचमुच न्यायपूर्ण और नैतिक है?

क्योंकि मैं आप पर हमला नहीं कर रहा।
मैं तो बस यह जानने की कोशिश कर रहा हूँ कि किताबों में लिखा अल्लाह और रसूल वैसा है भी या नहीं जैसा हमारे दिल में बसा हुआ ईश्वर और नैतिक मूल्य हैं।

और हो सकता है, आपको भी सोचना पड़े:
👉 मेरे दिल में बसा खुदा — क्या वही है जो किताब में लिखा है?


इस यात्रा की शुरुआत

कौन जाने, कहीं ऐसा तो नहीं कि जिन किताबों को हमने अंतिम सत्य मान लिया, उनमें किसी ने समय के साथ बदलाव कर हमें गुमराह कर दिया हो? लेकिन सच यह है कि हममें से अधिकांश इस सवाल पर विचार भी नहीं करना चाहते। क्यों? क्योंकि हमने यह मान लिया है कि जितने पवित्र हम स्वयं हैं, उतने ही पवित्र और निष्कलंक वे सब लोग रहे होंगे, जिनके हाथों से होकर ये किताबें हम तक पहुँचीं। हमें यह विश्वास दिलाया गया कि इनकी हिफ़ाज़त ख़ुद ईश्वर करता है, परंतु उन्हीं किताबों में कठोर और अमानवीय बातें भी दर्ज हैं।

इसी संभावना पर विचार करते हुए हमने AsliMomin.com पर एक प्रयास किया है।
यहाँ हम कठिन सवालों पर चर्चा करेंगे और कोशिश करेंगे कि एक सच्चे ईश्वर को समझा जाए। हमारा विनम्र अनुरोध है कि आप इसे व्यक्तिगत या भावनात्मक रूप से न लें, बल्कि शैक्षणिक और अध्ययन की दृष्टि से देखें।

इसके लिए हमने सवालों की एक श्रृंखला तैयार की है—मेरे सवालों की किताब

जिन्हें क्रमवार पढ़कर आप स्वयं खोज सकते हैं कि सच्चा ईश्वर कैसा है—जैसा किताबों में बताया गया है या जैसा हमारी नैतिकता और अंतरात्मा हमें समझाती है।

जिन किताबों पर ईमान है, क्या वे असली और सुरक्षित (यानि बदली नहीं हैं)?

अगर नहीं बदली है तो क्या किताबों का ईश्वर और उसका दूत हमारी सोच जैसा है?

तुमने सही से नहीं पढ़ा है-

अब आप उलझन में हैं और सोच रहे हैं—ईमान को कैसे बचाया जाए, वह भी इंसानियत और नैतिकता के साथ?

यहाँ तक पढ़कर आपको हमारे प्रयासों का संदर्भ और उद्देश्य समझ आ जाएगा। इसके बाद हम जानने की कोशिश करेंगे—किताबों में लिखा इतिहास बनाम प्रतात्विक साक्ष्य

और जब यह आधार साफ़ हो जाएगा, तब हम जाएंगे इतिहास और दावों की ओर:

  • इस्लामी कैलेंडर [Link]
  • इस्लामी दावा: इब्राहीम → [इब्राहीम लेख]
  • मारीब बाँध सिद्धांत → [मारीब लेख]

इसके बाद अन्य लेखों में हम यह भी जानने का प्रयास करेंगे कि इस्लामी रणनीति क्या कहती है।
हमारे अन्य लेखों में आपको मिलेंगे और भी कई सवाल—हमारी सवालों की किताब” से।

इस्लामी रणनीति

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असली मक़सद

मैं यहाँ गाली देने या मज़ाक उड़ाने नहीं आया।
मैं तो बस यह पूछ रहा हूँ:

👉 क्या मेरे दिल का खुदा वही है जो किताब में लिखा है?
👉 क्या मेरी नैतिकता, मेरी इंसानियत, किताबों में लिखे आदेशों से मेल खाती है?

क्योंकि आत्म-मंथन ज़रूरी है।
बिना आत्म-मंथन के ईमान अंधविश्वास बन जाता है।


आख़िरी बात

मैं सवाल करने से इंकार नहीं कर रहा।
मैं तो बस तुलना कर रहा हूँ — किताबों के खुदा और रसूल की, अपने दिल में बसे ईश्वर और इंसानियत के साथ।

आख़िर में फ़ैसला आपका है:
⚖️ आपका खुदा वही है जो आपने चुना है? या वह जो किताबों ने थोप दिया है?

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